प्रदोष व्रत की महिमा || Vaibhav Vyas


 प्रदोष व्रत की महिमा

प्रदोष व्रत को रखने से दो गायों को दान देने के समान पुण्य फल प्राप्त होता है। प्रदोष व्रत को लेकर एक पौराणिक तथ्य सामने आता है कि एक दिन जब चारों ओर अधर्म की स्थिति होगी, अन्याय और अनाचार का एकाधिकार होगा, मनुष्य में स्वार्थ भाव अधिक होगी, व्यक्ति सत्कर्म करने के स्थान पर नीच कार्यों को अधिक करेगा। उस समय में जो व्यक्ति त्रयोदशी का व्रत रख, शिव आराधना करेगा, उस पर शिव कृ्पा होगी। इस व्रत को रखने वाला व्यक्ति जन्म-जन्मान्तर के फेरों से निकल कर मोक्ष मार्ग पर आगे बढता है. उसे उतम लोक की प्राप्ति होती है।

प्रदोष व्रत का महत्व- मान्यता और श्रद्धा के अनुसार स्त्री-पुरुष दोनों यह व्रत करते हैं। कहा जाता है कि इस व्रत से कई दोषों की मुक्ति तथा संकटों का निवारण होता है। यह व्रत साप्ताहिक महत्त्व भी रखता है।

रविवार को पडऩे वाले प्रदोष व्रत से आयु वृद्धि तथा अच्छा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

सोमवार के दिन त्रयोदशी पडऩे पर किया जाने वाला व्रत आरोग्य प्रदान करता है और इंसान की सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है। मंगलवार के दिन त्रयोदशी का प्रदोष व्रत हो तो उस दिन के व्रत को करने से रोगों से मुक्ति व स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है। बुधवार के दिन प्रदोष व्रत हो तो, उपासक की सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। गुरुवार के दिन प्रदोष व्रत पड़े तो इस दिन के व्रत के फल से शत्रुओं का विनाश होता है। शुक्रवार के दिन होने वाला प्रदोष व्रत सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन की सुख-शान्ति के लिए किया जाता है। संतान प्राप्ति की कामना हो तो शनिवार के दिन पडऩे वाला प्रदोष व्रत करना चाहिए।

अपने उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए जब प्रदोष व्रत किए जाते हैं तो व्रत से मिलने वाले फलों में वृ्द्धि होती है।

प्रदोष व्रत का उद्यापन- इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का उद्यापन करना चाहिए। व्रत का उद्यापन त्रयोदशी तिथि पर ही करना चाहिए। उद्यापन से एक दिन पूर्व श्री गणेश का पूजन किया जाता है। पूर्व रात्रि में कीर्तन करते हुए जागरण किया जाता है। प्रात: जल्दी उठकर मंडप बनाकर, मंडप को वस्त्रों और रंगोली से सजाकर तैयार किया जाता है।

ऊँ उमा सहित शिवाय नम: मंत्र का एक माला यानी 108 बार जाप करते हुए हवन किया जाता है। हवन में आहूति के लिए खीर का प्रयोग किया जाता है।

हवन समाप्त होने के बाद भगवान भोलेनाथ की आरती की जाती है और शान्ति पाठ किया जाता है।

अंत में दो ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है और अपने सामथ्र्य अनुसार दान दक्षिणा देकर आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।

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