सफला एकादशी व्रत कथा || Vaibhav Vyas


 सफला एकादशी व्रत कथा

हिंदू धर्म में एकादशी के व्रत को विशेष महत्व दिया गया है। पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहा जाता है। विष्णु पुराण में उल्लेखित एक कथा के अनुसार जिस प्रकार नागों में शेषनाग, पक्षियों में गरुड़, ग्रहों में चंद्रमा, यज्ञों में अश्वमेध और देवताओं में भगवान विष्णु सर्वश्रेष्ठ हैं उसी प्रकार सभी व्रतों में एकादशी का व्रत सर्वश्रेष्ठ है। मान्यता है कि यह एकादशी अपने नाम के अनुरूप मनुष्य को सफलता प्रदान करने वाली होती है। इस दिन श्रीहरि भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और विशेष फल की प्राप्ति होती है। तथा जीवन के सभी सुखों को भोगने के बाद वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति होती है।

कोई भी व्रत, विशेषकर एकादशी के व्रत के दिन व्रत करने वालों को उस एकादशी से संबंधित कथा का वाचन-श्रवण करने से उसकी पूर्णता मानी जाती है इसलिए इस दिन कथा का वाचन-श्रवण करना चाहिए जिससे उस व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होने वाला रहता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यज्ञ और दान करने से उतना पुण्य प्राप्त नहीं होता जितना एकादशी व्रत का पालन करने से होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सफला एकादशी व्रत का श्रवण करने से व्यक्ति को अपने सभी कार्यों में सफलता मिलती है और धन संबंधी समस्याओं का निवारण होता है, बिना व्रत कथा के एकादशी पूजा विधि अधूरी मानी जाती है। 

महाभारत काल से जुड़ी है कथा- पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है और इस दिन किस देवता का पूजन किया जाता है? इसे सुन भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि इस एकादशी तिथि का नाम सफला एकादशी है, इस दिन नारायण की पूजा अर्चना का विधान है। यज्ञ और दान करने से उतना पुण्य प्राप्त नहीं होता जितना एकादशी व्रत का पालन करने से होता है इसलिए इसे अत्यंत भक्ति और श्रद्धा के साथ करना चाहिए।

सफला एकादशी पौराणिक कथा- पौराणिक कथाओं के अनुसार चम्पावती नगरी में एक महिष्मान नामक राजा राज करता था, उसके चार पुत्र थे। चारो बेटों में सबसे बड़ा पुत्र लुम्भक महापापी था। वह सदा ही पाप कर्मों में लिप्त रहता था। वह पूरे दिन मांस मदिरा का सेवन कर वैश्यावृत्ति में गुजार देता था। जुआं खेलना, वैश्यावृत्ति, ब्राम्हणों का अपमान करना और देवताओं की निंदा करना उसके लिए सामान्य हो गया था। आखिरकार एक दिन राजा महिष्मान ने अपने पुत्र के दुर्यव्यवहार से तंग आकर उसे राज्य से बाहर निकाल दिया।

राजा के डर के कारण उसका कोई भी मित्र या स्नेही उसे नहीं बचा पाया और वह जंगल में अपना जीवन व्यतीत करने लगा। नगर से बाहर निकाले जाने पर भी लुम्भक के स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। उसने रात्रि के समय नगर में चोरी करना शुरू कर दिया। कई बार रात में लोगों ने उसे चोरी करते हुए पकड़ा, लेकिन राजा के भय के कारण उसे कोई कुछ ना कहता। इस प्रकार कुछ समय बीत जाने के बाद सफला एकादशी से एक दिन पहले दशमी की रात वह ठंड से कांपने लगा, जिसकी वजह से उसे नींद नहीं आई और अपने बुरे कर्मों पर पछतावा होने लगा। इस प्रकार दशमी के दिन अनजाने में उसने जागरण कर लिया।

एकादशी की सुबह ठंड के प्रकोप से वह मुर्छित हो गया, पहली बार उसे अपनी असहाय अवस्था का अनुभव हुआ। किसी तरह हिम्मत कर उसने बगीचे से फल एकत्रित किया और अपने कर्मों पर पछातावा करते हुए भगवान विष्णु की अराधना करता रहा। अनजाने में लुम्भक का सफला एकादशी का व्रत संपन्न हो गया और उसको पापों से मुक्ति मिल गई।

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