कार्तिक पूर्णिमा पर करें दीपदान और दान-पुण्य || Vaibhav Vyas


 कार्तिक पूर्णिमा पर करें दीपदान और दान-पुण्य

वैसे तो पूरा कार्तिक मास धार्मिक कार्यों के लिए सर्वोत्तम माना गया ही है, वहीं कार्तिक पूर्णिमा पर बनने वाले विशेष संयोग से इस पूर्णिमा का महत्व विशेष हो जाता है। ऐसे संयोग विशेष अवसरों पर थोड़ा सा समय निकाल कर धार्मिक कार्य कर लिए जाएं तो व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि की वृद्धि के साथ मानसिक चिंताओं से भी मुक्ति का मार्ग खुल सकता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन महादेव जी ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का संहार किया था, इसलिए इसे 'त्रिपुरी पूर्णिमाÓ भी कहते हैं।

मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा पर संध्या के समय भगवान विष्णु का मत्स्यावतार हुआ था। इस दिन गंगा स्नान के बाद दीप-दान का फल दस यज्ञों के समान होता है। ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अंगिरा और आदित्य ने इसे महापुनीत पर्व कहा है। कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान, दीपदान, होम, यज्ञ और ईश्वर की उपासना का विशेष महत्व है। इस दिन किये जाने वाले धार्मिक कर्मकांड इस प्रकार हैं-

- पूर्णिमा के दिन प्रात:काल जाग कर व्रत का संकल्प लें और किसी पवित्र नदी, सरोवर या कुंड में स्नान करें।

-  इस दिन चंद्रोदय पर शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसुईया और क्षमा इन छ: कृतिकाओं का पूजन अवश्य करना चाहिए।

-  कार्तिक पूर्णिमा की रात्रि में व्रत करके बैल का दान करने से शिव पद प्राप्त होता है।

-  गाय, हाथी, घोड़ा, रथ और घी आदि का दान करने से संपत्ति बढ़ती है।

-  भेड़ का दान करने से ग्रहयोग के कष्टों का नाश होता है।

-  कार्तिक पूर्णिमा से प्रारंभ होकर प्रत्येक पूर्णिमा को रात्रि में व्रत और जागरण करने से सभी मनोरथ सिद्ध होते हैं।

-  कार्तिक पूर्णिमा का व्रत रखने वाले व्रती को किसी जरुरतमंद को भोजन और हवन अवश्य कराना चाहिए।

-  इस दिन यमुना जी पर कार्तिक स्नान का समापन करके राधा-कृष्ण का पूजन और दीपदान करना चाहिए।

कार्तिक मास में आने वाली पूर्णिमा वर्षभर की पवित्र पूर्णमासियों में से एक है। इस दिन किये जाने वाले दान-पुण्य के कार्य विशेष फलदायी होते हैं। मान्यतानुसार इस दिन संध्याकाल में त्रिपुरोत्सव करके दीपदान करने से पुनर्जन्म का कष्ट नहीं होता है।

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