विश्वास, आस्था और समर्पण से मिलता है कर्म का फल || Vaibhav VYas


 विश्वास, आस्था और समर्पण से मिलता है कर्म का फल

हिन्दू धर्म में मान्यताएं है कि पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से किए गए कर्म, वो कर्म चाहे भौतिक हो या आध्यात्मिक, फलीभूत अवश्य होते हैं। इन श्रद्धा और विश्वास में व्रत-उपवास से लेकर संस्कार तक जुड़े हुए हैं। जिनका अनुसरण आज के भौतिक युग में यथावत पुरातन परम्पराओं के साथ किया जा रहा है। परम्पराओं के अनुसार इन सबके अनुसरण से देव प्रसन्न होकर कष्ट-परेशानियां दूर करते हैं। इनका वैज्ञानिक कारण भी इनके साथ जुड़ा हुआ है, जिसे जीवन में प्रत्यक्ष अनुभव-महसूस किया जा सकता है।

व्रत रखने का बहुत महत्व है। खासतौर पर महिलाएं अपनी अपनी श्रद्दा और आस्था के अनुसार अलग-अलग देवी, देवताओं को मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं। धर्म और मान्यता के अनुसार व्रत रखने से देवी, देवता प्रसन्न होते हैं तथा कष्टों और परेशानियों को दूर करके, मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं।

वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो भी सप्ताह में एक दिन व्रत-उपवास रखना फायदेमन्द माना गया है। आयुर्वेद के अनुसार व्रत रखने से और दिन भर में सिर्फ फल खाने से पाचन क्रिया को आराम मिलता है। जिससे पाचन तन्त्र ठीक रहता है और शरीर से हानिकारक तथा अवांछित तत्व बाहर निकल जाते हैं जिससे शरीर तथा स्वास्थ्य ठीक रहता है। एक शोध के अनुसार सप्ताह में एक दिन व्रत रखने से कैंसर, मधुमेह तथा ह्दय सम्बन्धी बीमारियों का खतरा कम होता है।

आस्था, विश्वास और दृढ़ इच्छाशक्ति केवल ऊपरी आधार पर नहीं हो, यह तय कर लेना आवश्यक है। इसे एक कहानी के माध्यम से भी समझा जा सकता है।

एक बाार की बात है। एक राजा की पुत्री के मन में वैराग्य की भावनाएं थीं। जब राजकुमारी विवाह योग्य हुई तो राजा को उसके विवाह के लिए योग्य वर नहीं मिल पा रहा था। राजा ने पुत्री की भावनाओं को समझते हुए बहुत सोच-विचार करके उसका विवाह एक गरीब संन्यासी से करवा दिया। राजा ने सोचा कि एक संन्यासी ही राजकुमारी की भावनाओं की कद्र कर सकता है। विवाह के बाद राजकुमारी खुशी-खुशी संन्यासी की कुटिया में रहने आ गई।

सादा जीवन व्यतीत करते हुए एक दिन कुटिया की सफाई करते समय राजकुमारी को एक बर्तन में दो सूखी रोटियां दिखाई दीं। उसने अपने संन्यासी पति से पूछा कि रोटियां यहां क्यों रखी हैं? संन्यासी ने जवाब दिया कि ये रोटियां कल के लिए रखी हैं, अगर कल खाना नहीं मिला तो हम एक-एक रोटी खा लेंगे। संन्यासी का ये जवाब सुनकर राजकुमारी हंस पड़ी। राजकुमारी ने कहा कि मेरे पिता ने मेरा विवाह आपके साथ इसलिए किया था, क्योंकि उन्हें ये लगता है कि आप भी मेरी ही तरह वैरागी हैं, आप तो  सिर्फ भक्ति करते हैं और कल की चिंता करते हैं। सच्चा भक्त वही है जो कल की चिंता नहीं करता और भगवान पर पूरा भरोसा करता है। अगले दिन की चिंता तो जानवर भी नहीं करते हैं, हम तो इंसान हैं। अगर भगवान चाहेगा तो हमें खाना मिल जाएगा और नहीं मिलेगा तो रातभर आनंद से प्रार्थना करेंगे।

ये बातें सुनकर संन्यासी की आंखें खुल गई। उसे समझ आ गया कि उसकी पत्नी ही असली संन्यासी है। उसने राजकुमारी से कहा कि आप तो राजा की बेटी हैं, राजमहल छोड़कर मेरी छोटी-सी कुटिया में आई हैं, जबकि मैं तो पहले से ही एक फकीर हूं, फिर भी मुझे कल की चिंता सता रही थी। सिर्फ कहने से ही कोई संन्यासी नहीं होता, संन्यास को जीवन में उतारना पड़ता है। आपने मुझे वैराग्य का महत्व समझा दिया। 

अगर हम भगवान की भक्ति करते हैं तो विश्वास, आस्था और समर्पण भी होना चाहिए कि भगवान हर समय हमारे साथ है। उसको (भगवान) हमारी चिंता हमसे ज्यादा रहती हैं।

स्वयं के मन में ही अगर संशय का बीज हो तो फिर फलीभूत वही बीज ही होगा। कभी आप बहुत परेशान हो, कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा हो तो पूरी दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ संकल्पित हो कर आप आँखे बंद कर के विश्वास के साथ पुकारे, यकीन मानिये थोड़ी देर में आप की समस्या का समाधान मिल जायेगा, बस! चाहिए तो केवल विश्वास, आस्था और समर्पण।

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