कार्तिक मास में सुबह की स्नान और तुलसी पूजा महत्वपूर्ण || Vaibhav Vyas


 कार्तिक मास में सुबह की स्नान और तुलसी पूजा महत्वपूर्ण

कार्तिक मास में पूरे माह नदी-सरोवर में स्नान करने की परम्परा रही है, जिसे कार्तिक स्नान माना जाता है। इस स्नान के पश्चात् श्री विष्णु हरि की विशेष साधना-आराधना और सत्संग आदि कार्य यथासंभव किए जाने हैं। क्योंकि इस माह में की गई साधना-आराधना विशेष फलदायी होती है और इस उपासना से श्री विष्णु भगवान शीघ्र प्रसन्न होने वाले भी माने गए हैं।

कार्तिक मास में मंदिरों में प्रात:कालीन पूजा-अर्चना के बाद श्रद्धालु तुलसी के पौधे के पास बैठकर कार्तिक महात्म्य सुनते हैं। कहा जाता है कि ज्यों-ज्यों सूर्य की गर्मी प्रतिदिन कम होने लगती है और मार्गशीर्ष लगने तक पूरी तरह सर्द ऋतु शुरू हो जाती है। उसी प्रकार कार्तिक स्नान पूजा-अर्चना मनुष्य की काम, क्रोध आदि की बाधाओं को शांत करते हुए मन को पूरी तरह भगवान विष्णु की भक्ति में लगा देते हैं। मंदिरों में कार्तिक महात्म्य की कथा पूरे महीने भर चलती है जिसमें विद्वान ब्राह्मणों द्वारा आत्म संयम, सौहार्द, दान-पुण्य एवं परोपकार से जुड़े हुए कथा प्रसंग विशेष प्रकार से सुनाए जाते हैं। मंदिरों में कार्तिक मास में विशेष पूजा-उपासना एवं कथा प्रवचनों का क्रम चलता रहता है, जिससे भक्त सहज भाव से सत्संग का आनंद ले सके और मन को शांतचित्त कर प्रभु चरणों में लीन रह सके। 

कार्तिक मास में श्री हरि जल में ही निवास करते हैं। जल के तीन कर्मकांडों में स्नान महत्वपूर्ण कर्मकांड है। पुलस्त्य ऋषि ने कहा भी है कि स्नान के बिना न तो शरीर निर्मल होता है और न ही बुद्धि। इस माह में सूर्योदय से पूर्व ही पुण्य प्राप्ति के लिए स्नान करना चाहिए। स्नान के लिए तीर्थराज प्रयाग, अयोध्या, कुरुक्षेत्र और काशी को श्रेष्ठ माना गया है। इनके साथ ही सभी पवित्र नदियों और तीर्थस्थलों पर भी स्नान शुभ रहता है। यदि इन स्थानों पर नहीं जाया जा सके, तो इनका स्मरण करने से भी लाभ होता है। कार्तिक मास में तुलसी पूजा विशेष फलकारी मानी जाती है। पौराणिक मान्यता है कि तुलसी पूजन से यमदूतों के भय से मुक्ति मिलती है। मान्यता है कि कार्तिक मास में एक माह तक लगातार दीपदान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। शालीग्राम के रूप में भगवान विष्णु और तुलसी का विवाह भी इसी महीने कराया जाता है। 

ऐसी मान्यता है कि जिस घर में तुलसी जी होती हैं  ऐसे घर में यमदूत प्रवेश नहीं करते। तुलसी जी का विवाह शालिग्राम से हुआ था, इसलिए कहा जाता है कि जो तुलसी जी की भक्ति करता है, उसको भगवान की कृपा मिलती है। एक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने तुलसी जी को वरदान दिया था कि मुझे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जाएगा और जो व्यक्ति बिना तुलसी जी मेरी पूजा करेगा, उसका भोग मैं स्वीकार नहीं करुंगा।

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