भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना से होती हर मनोकामना पूर्ण || Vaibhav Vyas


 भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना से होती हर मनोकामना पूर्ण

भगवान विष्णु के प्रिय महीने कार्तिक मास में व्रत, तप और पूजा पाठ करने से हर तरह की मनोकामनाएं पूरी होकर अंतत: मोक्ष की प्राप्ति होनी वाली होती है। कार्तिक मास से देव तत्व भी मजबूत होता है। इसी महीने भगवान विष्णु योग निद्रा से जागते हैं और सृष्टि में आनंद और कृपा की वर्षा होती है। इस महीने में मां लक्ष्मी धरती पर भ्रमण करती हैं और भक्तों को अपार धन देती हैं। इस महीने में धन और धर्म दोनों से संबंधित कई प्रयोग और नियम हैं। पुराणों में कार्तिक मास के लिए विशेष रूप से 7 नियम बनाए गए हैं। कहा जाता है कि इस पुण्य मास में जो व्यक्ति भी इन नियमों का पूरी श्रद्धा से पालन कर लेता है उसे शुभ फल की प्राप्ति होती है और उसकी हर मनोकामना पूरी होती है।

1. तुलसी पूजा- कार्तिक के महीने में तुलसी पूजन, रोपण और सेवन करने का विशेष महत्व बताया गया है। कार्तिक मास में तुलसी पूजा का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। कहा जाता है कि इस माह में तुलसी की पूजा करने से विवाह संबंधी दिक्कतें दूर होती हैं।

2. दीपदान- शास्त्रों में कार्तिक मास में सबसे प्रमुख काम दीपदान करना बताया गया है। इस महीने में नदी, पोखर, तालाब और घर के एक कोने में दीपक जलाया जाता है। इस महीने दीपदान और दान करने से अक्षय शुभ फल की प्राप्ति होती है।

3. जमीन पर सोना- कार्तिक मास में भूमि पर सोना भी एक प्रमुख नियम माना गया है। भूमि पर सोने से मन में सात्विकता का भाव आता है तथा अन्य विकार भी समाप्त हो जाते हैं।

4. तेल लगाना वर्जित- कार्तिक महीने में शरीर पर तेल लगाने की भी मनाही होती है। कार्तिक महीने में केवल एक बार नरक चतुर्दशी के दिन ही शरीर पर तेल लगाना चाहिए।

5. दलहन खाना निषेध- कार्तिक महीने में द्विदलन यानी उड़द, मूंग, मसूर, चना, मटर, राई खाने पर भी मनाही होती है। इसके अलावा इस महीने में दोपहर में सोने को भी मना किया जाता है।

6. ब्रह्मचर्य का पालन- कार्तिक मास में ब्रह्मचर्य का पालन अति आवश्यक बताया गया है। कहा जाता है कि जो लोग इसका पालन नहीं करते हैं उन्हें दोष लगता है और इसके अशुभ फल भी प्राप्त होते हैं।

7. संयम रखें- कार्तिक मास का व्रत करने वालों को तपस्वियों के समान व्यवहार करना चाहिए। इस महीने में कम बोलें, किसी की निंदा या विवाद न करें, क्रोध ना करें और अपने मन पर संयम रखें। और मन में संतोष व्याप्त रखें। कहा भी गया है कि- संतोषी सदा सुखी।

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