शरद पूर्णिमा व्रत से सुख-समृद्धि में वृद्धि || Vaibhav Vyas


 शरद पूर्णिमा व्रत से सुख-समृद्धि में वृद्धि

हर माह में पडऩे वाली पूर्णिमा तिथि शुभ मानी जाती है, लेकिन आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा का खास महत्व है। इस दिन से सर्दियों की शुरुआत मानी जाती है।  इसलिए इस पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन दूध की खीर बनाकर चंद्रमा की रोशनी में रखी जाती है। मान्यता है कि चंद्रमा की किरणें खीर में पडऩे से यह कई गुना गुणकारी और लाभकारी हो जाती है। इस दिन माता लक्ष्मी का पूजन करने से विशेष लाभ मिलता है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस रात चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। चंद्रमा से निकलने वाली किरणें अमृत समान मानी जाती हैं। तभी कहावत ये भी है कि शरद पूर्णिमा की रात आसमान से अमृत बरसता है। शरद पूर्णिमा का व्रत रखा जाता है और रात को चन्द्रमा को अघ्र्य दिया जाता है।

शरद पूर्णिमा पर मंदिरों में विशेष पूजा का आयोजन होता है। शरद पूर्णिमा का दिन मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए खास माना जाता है। कहते हैं इस रात मां लक्ष्मी भ्रमण पर निकलती हैं। इस रात चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है, इसलिए चांद की रोशनी पृथ्वी को अपने आगोश में ले लेती है।

शरद पूर्णिमा के दिन सुबह उठकर व्रत का संकल्प लें और पवित्र नदी, जलाशय या कुंड में स्नान करें। इसके बाद आराध्य देव को सुंदर वस्त्र, आभूषण पहनाएं। आवाहन, आसन, आचमन, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, तांबूल, सुपारी और दक्षिणा आदि अर्पित कर पूजन करें। रात्रि के समय गाय के दूध से बनी खीर में घी और चीनी मिलाकर आधी रात के समय भगवान को भोग लगाएं। रात्रि में चंद्रमा के आकाश के मध्य में स्थित होने पर चंद्र देव का पूजन करें तथा खीर का नेवैद्य अर्पण करें। रात को खीर से भरा बर्तन चांद की रोशनी में रखकर दूसरे दिन उसे ग्रहण करें और सबको प्रसाद के रूप में वितरित करें।

मान्यता है कि इस खीर का प्रसाद के रूप में सेवन शरीर के रोगों से भी निजात दिलाने वाला होता है। इस दिन पूर्ण रूप से जल और फल ग्रहण करके उपवास रखने का प्रयास करें। उपवास रखें या न रखें लेकिन इस दिन सात्विक आहार ही ग्रहण करें तो ज्यादा बेहतर रहता है। शरीर के शुद्ध और खाली रहने से आप ज्यादा बेहतर तरीके से अमृत की प्राप्ति कर पाएंगे।

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