कार्तिक मास में स्नान-दान-पुण्य की विशेष महिमा || Vaibhav Vyas


 कार्तिक मास में स्नान-दान-पुण्य की विशेष महिमा

स्नान के लिए मंत्र-

आपस्त्वमसि देवेश ज्योतिषां पतिरेव च।

पापं नाशाय मे देव वामन: कर्मभि: कृतम।

यह बोल कर जल की ओर-

दु:खदरिद्रयनाषाय श्रीविश्णोस्तोशणाय च।

प्रात:स्नान करोम्यद्य माघे पापविनाषनम।।

यह कहकर ईश्वर की प्रार्थना करनी चाहिए-

स्नान के पश्चात का मंत्र-

सवित्रे प्रसवित्रे च परं धाम जले मम।

त्वत्तेजसा परिभ्रश्टं पापं यातु सहस्त्रधा।।


शास्त्रों के अनुसार, इस माह में भगवान श्री हरि जल में निवास करते हैं। इसीलिए कार्तिक मास में गंगा स्नान, दान, हवन और यज्ञ करने से शीघ्र फलदायी होने के साथ ही साथ पापों का नाश होता है। इन दिनों पूजा-पाठ करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। पौराणिक मान्यताएं है कि कार्तिक मास में व्रत करने से अग्निष्टोम यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है। इस महीने में की गई पूजा से सूर्यलोक की प्राप्ति होती है। कार्तिक पूर्णिमा पर पूजा-अर्चना करने से सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक मास में ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करना अति उत्तम माना जाता है। मान्यता है कि इस महीने किसी पवित्र नदी या घर में ही गंगाजल मिलाकर स्नान करना चाहिए। पूजा-अर्चना के साथ ही इस महीने किया गया दान-पुण्य का फल भी कई गुना मिलने वाला होता है। विशेष रूप से दान-पुण्य का कार्य गुप्त रीति से करने से भगवान की कृपा अति शीघ्र मिलने वाली होती है। कहा भी गया है कि एक हाथ से किए गए दान का दूसरे हाथ को भी पता नहीं चलना चाहिए। इसलिए दान-पुण्य की महिमा के चलते यथासंभव दान-पुण्य करना कार्तिक मास में विशेष फलदायी माना गया है।

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