दीपदान की महिमा अपरम्पपार || Vaibhav Vyas


 दीपदान की महिमा अपरम्पपार

हिंदू धर्म में कार्तिक मास को चतुर्मास का अंतिम मास माना जाता है और इस महीने का शास्त्रों में विशेष महात्म्य बताया गया है। इस माह में भजन, पूजन और दान-पुण्य के साथ दीपदान का खास महत्व रहता है। माना जाता है कि इस महीने में भगवान लक्ष्मीनारायण की विशेष कृपा भक्तों को प्राप्त होती है। माना जाता है कि मां लक्ष्मी के बिना इस संसार की कल्पना भी नहीं की जा सकती, इसलिए कार्तिक मास में मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए दीपदान के खास उपाय किए जाने चाहिए।

कार्तिक मास में दीपदान करना बहुत ही शुभफलदायी माना जाता है। कार्तिक माह में आकाशमंडल का सबसे बड़ा ग्रह माना जाने वाला सूर्य अपनी नीच की राशि तुला में गमन करता है। इस वजह से वातावरण में अंधकार पांव पसारने लगता है। इसलिए इस पूरे मास में दीपक जलाने, जप, तप और दान व स्नान करने का विशेष महत्व है। अगर किसी विशेष कारण से कार्तिक में प्रत्येक दिन आप दीपदान करने में असमर्थ हैं तो पांच विशेष दिन जरूर करें।

पद्मपुराण के उत्तरखंड में स्वयं महादेव कार्तिकेय को दीपावली, कार्तिक कृष्णपक्ष के पांच दिन में दीपदान का विशेष महत्व बताते हैं।

कृष्णपक्षे विशेषेण पुत्र पंचदिनानि च पुण्यानि तेषु

यो दत्ते दीपं सोऽक्षयमाप्नुयात्

विशेषत: कृष्णपक्ष में 5 दिन (रमा एकादशी से दीपावली तक) बड़े पवित्र हैं। उनमें जो भी दान किया जाता है, वह सब अक्षय और सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है।

अग्निपुराण में बताया गया है कि जो मनुष्य देव मंदिर अथवा ब्राह्मण के गृह में दीपदान करता है, वह सब कुछ प्राप्त कर लेता है। पद्मपुराण के अनुसार मंदिरों में और नदी के किनारे दीपदान करने से लक्ष्मीजी प्रसन्न होती हैं। दुर्गम स्थान अथवा भूमि पर दीपदान करने से व्यक्ति नरक जाने से बच जाता है।

पद्मपुराण के अनुसार, जो देवालय में, नदी के किनारे, सड़क पर दीप देता है, उसे सर्वतोमुखी लक्ष्मी प्राप्त होती है। कार्तिक में प्रतिदिन दो दीपक जरूर जलाएं। एक श्रीहरि नारायण के समक्ष तथा दूसरा शिवलिंग के समक्ष जलाएं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जिसने कार्तिक मास में भगवान केशव के समक्ष दीपदान किया है, उसने सम्पूर्ण यज्ञों का अनुष्ठान कर लिया और समस्त तीर्थों में गोता लगाने के समान फल की प्राप्ति का अवसर पा लिया है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है जो कार्तिक में श्रीहरि को घी का दीप देता है, वह दीपक जितने पल जलता है, उतने वर्षों तक हरिधाम में आनन्द भोगता है। फिर अपनी योनि में आकर विष्णुभक्ति पाता है।

जो कार्तिक मास की रात्रि में श्रद्धापूर्वक शिवजी के समीप दीपमाला समर्पित करता है, उसके चढ़ाये गए वे दीप शिवलिंग के सामने जितने समय तक जलते हैं, उतने हजार युगों तक दाता स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है। जो कार्तिक महीने में शिवजी के सामने घृत का दीपक समर्पित करता है, वह ब्रह्मलोक को जाता है।

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