कार्तिक मास में करें दीपदान || Vaibhav Vyas


 कार्तिक मास में करें दीपदान

महापुण्यदायक तथा मोक्षदायक कार्तिक के मुख्य नियमों में सबसे प्रमुख नियम है दीपदान। दीपदान का अर्थ होता है आस्था के साथ दीपक प्रज्वलित करना। कार्तिक मास में प्रत्येक दिन दीपदान जरूर करना चाहिए। पुराणों में वर्णन मिलता है-

हरिजागरणं प्रात:स्नानं तुलसिसेवनम्। उद्यापनं दीपदानं व्रतान्येतानि कार्तिके।।

स्नानं च दीपदानं च तुलसीवनपालनम्। भूमिशय्या ब्रह्मचय्र्यं तथा द्विदलवर्जनम्।।

विष्णुसंकीर्तनं सत्यं पुराणश्रवणं तथा। कार्तिके मासि कुर्वंति जीवन्मुक्तास्त एव हि।।

पुराणों में आए वृत्तांतों से इसकी महिमा स्वत: ही स्पष्ट होती दृष्टिगोचर होती है। ऐसे ही पद्मपुराण उत्तरखंड, अध्याय 121 में कार्तिक में दीपदान की तुलना अश्वमेघ यज्ञ से की है।

घृतेन दीपको यस्य तिलतैलेन वा पुन:। ज्वलते यस्य सेनानीरश्वमेधेन तस्य किम्।

कार्तिक में घी अथवा तिल के तेल से जिसका दीपक जलता रहता है, उसे अश्वमेघ यज्ञ से क्या लेना है।

अग्निपुराण के 200वें अध्याय के अनुसार-

दीपदानात्परं नास्ति न भूतं न भविष्यति

दीपदान से बढ़कर न कोई व्रत है, न था और न होगा ही।

स्कंदपुराण, वैष्णवखण्ड के अनुसार-

सूर्यग्रहे कुरुक्षेत्रे नर्मदायां शशिग्रहे।। तुलादानस्य यत्पुण्यं तदत्र दीपदानत:।।

कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण के समय और नर्मदा में चन्द्रग्रहण के समय अपने वजन के बराबर स्वर्ण के तुलादान करने का जो पुण्य है वह केवल दीपदान से मिल जाता है।

कार्तिक में दीपदान का एक मुख्य उद्देश्य पितरों का मार्ग प्रशस्त करना भी है।

तुला संस्थे सहस्त्राशौ प्रदोषे भूतदर्शयो:

उल्का हस्ता नरा: कुर्यु: पितृणाम् मार्ग दर्शनम्।।

पितरों के निमित्त दीपदान जरूर करें। 

पद्मपुराण, उत्तरखंड, अध्याय 123 में महादेव कार्तिक में दीपदान का माहात्म्य सुनाते हुए अपने पुत्र कार्तिकेय से कहते हैं-

शृणु दीपस्य माहात्म्यं कार्तिके शिखिवाहन। पितरश्चैव वांच्छंति सदा पितृगणैर्वृता:।।

भविष्यति कुलेऽस्माकं पितृभक्त: सुपुत्रक:। कार्तिके दीपदानेन यस्तोषयति केशवम्।।

मनुष्य के पितर अन्य पितृगणों के साथ सदा इस बात की अभिलाषा करते हैं कि क्या हमारे कुल में भी कोई ऐसा उत्तम पितृभक्त पुत्र उत्पन्न होगा, जो कार्तिक में दीपदान करके श्रीकेशव को संतुष्ट कर सके।

प्राणी मात्र को कार्तिक मास की स्वत: सिद्ध श्रेष्ठता के अनुरूप कार्य करने पर सांसारिक कष्टों से तो मुक्ति मिलती ही है, साथ ही पारलौकिक सुखों भी प्राप्त कर सकता है। इस तरह छोटे-छोटे उपायों से जीवन में आने वाली परेशानियों से भी बचा जा सकता है।

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