छठ पूजा में सूर्य उपासना का विशेष महत्व || Vaibhav Vyas


 छठ पूजा में सूर्य उपासना का विशेष महत्व

कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान सूर्य की उपासना के साथ छठ पर्व की शुरुआत होती है। हिंदू धर्म में किसी भी पर्व की शुरुआत स्नान के साथ ही होती है और ये पर्व भी स्नान यानी नहाय-खाय के साथ होता है। कार्तिक महीने में छठ मनाने का विशेष महत्व है। सूर्य उपासना का महापर्व छठ कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से सप्तमी की तिथि तक भगवान सूर्यदेव की अटल आस्था के रूप में मनाया जाता है। हालांकि मुख्य तौर पर छठ कार्तिक शुक्ल षष्ठी को ही मनाया जाता है। षष्ठी व्रत 30 अक्टूबर रविवार को शुरू किया जाएगा और और छठ व्रत मुख्य पूजन किया जाएगा। इसके अगले दिन सप्तमी को प्रात: सूर्योदय के समय जल देकर छठ व्रत का समापन किया जाएगा।

कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से ही देवी छठ माता की पूजा अर्चना शुरू हो जाती है और सप्तमी तिथि की सुबह तक चलती है। चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व के पहले दिन नहाय-खाय है। फिर सूर्य देव और छठी मईया की उपासना की जाएगी। यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। छठ पूजा छठी मैया को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व को छठ पूजा, डाला छठ, छठी माई, छठ, छठ माई पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा आदि कई नामों से भी जाना जाता है।

नहाय-खाय का महत्व- छठ पर्व में साफ-सफाई का विशेष महत्व होता है। कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को छठ पर्व का प्रथम दिन होता है। इस दिन व्रती प्रात: काल जल्दी उठकर साफ-सफाई करते हैं और स्नानादि करने के पश्चात छठ पर्व का आरंभ किया जाता है।

खरना- कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को छठ व्रत का दूसरा दिन होता है। इस दिन को खरना या लोहंडा भी कहा जाता है। इस दिन मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी से आग जलाकर साठी के चावल, दूध और गुड़ की खीर बनाई जाती है। संध्या के समय नदी या सरोवर पर जाकर सूर्य को जल दिया जाता है और इसके बाद छठ का कठिन व्रत आरंभ हो जाता है।

षष्ठी तिथि को होता है मुख्य छठ व्रत- षष्ठी तिथि को छठ पर्व का मुख्य पूजन किया जाता है। इस दिन प्रात: सूर्योदय के समय नदी सरोवर पर जाकर अघ्र्य दिया जाता है और छठी मईया का पूजन किया जाता है। व्रती पूरे दिन कठिन निर्जला उपवास करते हैं। शाम के समय पुन: नदी पर जाकर पानी में खड़े होकर सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है। इसके अगले दिन सप्तमी को प्रात: उगते सूर्य को जल दिया जाता है और छठ पर्व का समापन किया जाता है।

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