विष्णु पुराण, मार्कण्डेय पुराण तथा ब्रह्म पुराण में आए उल्लेख के अनुसार श्राद्ध पक्ष में श्राद्ध कर्म करते समय विधि-विधान से श्राद्ध करने के साथ ही साथ कई महत्वपूर्ण बातों का भी ध्यान रखना चाहिए, जिससे श्राद्ध कर्म पूर्ण किया जा सके।
- पूर्वाह्न काल, सन्ध्या और रात्रि में श्राद्ध नहीं करना चाहिए।
- श्राद्ध काल के समय यदि अतिथि आ जाए तो उसका सत्कार अवश्य करें।
- श्राद्ध के निमित्त मांग कर लाया गया दूध, भैंस और एक खुर वाले पशुओं का दूध श्राद्ध के काम में नहीं लेना चाहिए।
- राजमाष, मसूर, अरहर, चना, गाजर, कुम्हड़ा, गोल लोकी, बैंगन, शलजम, हींग, प्याज, लहसुन, काला नमक, काला जीरा, सिंघाड़ा, जामुन, पिप्पली, सुपारी, कुलथी, कैथ, महुआ, अलसी, पीली सरसों यह सब वस्तुएं श्राद्ध में वर्जित है।
- मृत कुंवारे बच्चों की तिथि ज्ञात नहीं हो तो उनका पञ्चमी तिथि को श्राद्ध किया जाता है।
- सौभाग्यवती स्त्री की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं हो तो उनका नवमी तिथि के दिन श्राद्ध किया जाता है।
- जिनकी शस्त्रों से, दुर्घटना से या अकाल मृत्यु हुई हो, किंतु उनकी मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं हो तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है।
- उन सभी ज्ञात -अज्ञातजनों की जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है, उन सबका श्राद्ध सर्वपितृ अमावस्या के दिन किया जाता है।
- 2 वर्ष से छोटे बालक का कोई श्राद्ध नहीं किया जाता है।
- अत्यन्त धनी होने पर भी श्राद्धकर्म में अधिक विस्तार नहीं करना चाहिए।
- श्राद्ध में मित्रता का सम्बंध जोडऩे के स्वार्थ से भोजन नहीं करना चाहिए।
- श्राद्ध में जौ, मूंग, गेहूं, खीर, धान, तिल, मटर, कचनार, सरसों, परवल, कांगनी, सावा, चावल, आम, अमड़ा, बेल, अनार, बिजौरा, पुराना ऑंवला, नारियल, फालसा, नारंगी, खजूर, अंगूर, नीलकैथ, चिरौंजी, बेर, जङ्गली बेर, इन्द्रजौ और बतुआ - इनमें से कोई भी वस्तु यत्नपूर्वक लेना चाहिए।
- श्राद्ध के भोजन में खीर और मालपुए का अधिक महत्त्व है।
- खीर - पूरी भी विकल्प है, परन्तु पूरी घी में बनी हो।
- श्राद्ध पक्ष में तर्पण और ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए।
- श्राद्ध का भोजन करने वाले ब्राह्मण के आसन के आसपास काले तिल बिखेर देना चाहिए।
- काले तिल व कुशा से पितृ प्रसन्न होते हैं।
- अनामिका उंगली में चांदी या सोने की अंगूठी पहन कर तर्पण करना चाहिए।
- श्राद्ध में केले के पत्ते व मिट्टी ( चीनी), स्टील के पात्र में ब्राह्मण को भोजन कराना निषेध है।
- श्राद्ध का भोजन करने वाले ब्राह्मण को लोहे के पात्र से भोजन नहीं परोसना चाहिए।
- श्राद्ध काल में वस्त्र का दान विशेष रूप से करना चाहिए।
- श्राद्ध व अमावस्या के दिन घर में मन्थन क्रिया ( दही बिलोना ) करना निषेध है।
- पितरों का स्थान आकाश और दक्षिण दिशा है। दक्षिण दिशा में मुंह कर पितृ तर्पण करना चाहिए।
- श्राद्ध में श्रद्धा होना जरूरी है। क्रोध व जल्दबाजी नहीं होना चाहिए।
- सोने चांदी और ताम्बे के पात्र पितरों के पात्र कहे जाते हैं। श्राद्ध में चांदी की चर्चा और दर्शन से पितर प्रसन्न होते हैं।
- श्राद्ध के निमित्त भोजन वेद ज्ञाता ब्राह्मण, यति और जरूरतमंद को ही कराना चाहिए।
- श्राद्ध के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन कराते समय उस दिन 10 कि. मी. के भीतर रहने वाले अपने दामाद, भांजा - भांजी, बहन और भाई बन्धुओं को भी आमन्त्रित कर पारिवारिक सद्भाव के साथ बैठकर भोजन करना चाहिए।
- श्राद्ध में मुख्य रूप से मालती, जूही, चम्पा, कमल के सफेद पुष्प लेना चाहिए।
- तुलसी, तिल, कुश, दूध, गंगा जल, शहद, दौहित्र और कुतप से पितृ अधिक प्रसन्न होते हैं।
- मृत्यु के 13 महीने बाद मृत्यु तिथि पर (वार्षिक मृत्यु तिथि पर) श्राद्ध करने की आवश्यकता नहीं है। केवल ब्राह्मण भोजन करा देना चाहिए।
- दूसरा वर्ष पूरा होने पर तीसरे वर्ष के प्रथम दिन अर्थात् दूसरे वर्ष की वार्षिक तिथि पर श्राद्ध करना चाहिए तथा इसके बाद आने वाले पितृपक्ष में मृत्यु तिथि वाली तिथि के दिन श्राद्ध में मिलाना चाहिए।
- इस दौरान अन्य पितरों का श्राद्ध करते रहना चाहिए।
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