पितरों को मोक्ष दिलाता है एकादशी का व्रत || Vaibhav Vyas


 पितरों को मोक्ष दिलाता है एकादशी का व्रत

पितृ पक्ष के दौरान पडऩे वाली एकादशी का धार्मिक रूप से बड़ा महत्व है। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से हमारे पूर्वजों को तमाम कष्टों से मुक्ति मिलती है और उनका उद्धार हो जाता है। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में पडऩे वाली एकादशी को इंदिरा एकादशी के नाम से जाना जाता है। हर साल पितृ पक्ष के दौरान पडऩे वाली इस एकादशी को पितरों को मोक्ष दिलाने वाली एकादशी कहा जाता है। मान्यता है कि यदि इस व्रत को रखकर विधिवत पूजा करके पुण्य पूर्वजों को अर्पित किया जाए, तो उन्हें नर्क की यातनाओं से छुटकारा मिलता है और उनका उद्धार हो जाता है।

श्राद्ध पक्ष के दौरान पितरों की तृप्ति के लिए कई उपाय किए जाते हैं। 16 दिन तक चलने वाले पितृ पक्ष में तर्पण व श्राद्ध कर्म से प्रसन्न होकर पितृ प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देते हैं। पितृ पक्ष के दौरान इंदिरा एकादशी का व्रत भी बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। इस एकादशी का व्रत करने वाले मनुष्य की सात पीढिय़ों तक के पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। एकादशी पर विष्णु जी के अवतार भगवान शालिग्राम की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से पितरों के साथ ही स्वयं के लिए भी ये व्रत बेहद लाभदायक होता है।

श्राद्ध पक्ष की एकादशी बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है. इस व्रत के लिए धार्मिक क्रियाएं दशमी से शुरू करें। इसी दिन से घर में पूजा-पाठ करें और दोपहर में नदी में तर्पण की विधि करें। यदि नदी में संभव न हो, तो घर के पास के किसी जलाशय, या घर की छत पर भी वर्षा के जल से तर्पण कर सकते हैं। इसके पश्चात ब्राह्मण भोज कराएं और फिर स्वयं भी भोजन कर लें। ऐसी मान्यता है कि एकादशी के एक दिन पूर्व सूर्यास्त के बाद कुछ नहीं खाना चाहिए। एकादशी के दिन सुबह उठकर व्रत का संकल्प लें और स्नान करने के बाद श्राद्ध विधि करें एवं ब्राह्मणों को भोजन कराएं। इसके बाद गाय, कौवे और कुत्ते को भी भोजन कराएं। व्रत के अगले दिन द्वादशी को भी पूजन के बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें। इसके बाद परिवार के साथ मिलकर भोजन करें।

एकादशी के बारे में प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार सतयुग में महिष्मती नाम के नगर में इंद्रसेन नाम के एक राजा थे। उनके माता-पिता का स्वर्गवास हो चुका था। एक रात उन्हें सपना आया, जिसमें उन्होंने देखा कि उनके माता-पिता नर्क में रहकर अपार कष्ट भोग रहे हैं। इस स्वप्न से राजा बहुत चिंतित हो उठे। इस स्वप्न को लेकर उन्होंने विद्वान ब्राह्मणों और मंत्रियों को बुलाकर बात की, जिसके बाद ब्राह्मणों ने उन्हें बताया कि हे राजन! यदि आप सपत्नीक इंदिरा एकादशी का व्रत करें, तो आपके पितरों को मुक्ति मिल जाएगी। इस दिन आप भगवान शालिग्राम की पूजा करें और ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा दें। इससे आपके माता-पिता स्वर्ग चले जाएंगे। राजा ने ब्राह्मणों की बात मानकर विधिपूर्वक इंदिरा एकादशी का व्रत किया। रात्रि में जब वे सो रहे थे, तभी भगवान ने उन्हें दर्शन देकर कहा कि राजन तुम्हारे व्रत के प्रभाव से तुम्हारे पितरों को मोक्ष की प्राप्ति हुई है।

जो लोग यह व्रत नहीं कर पा रहे हों उन्हें इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए और इंदिरा एकादशी व्रत का पाठ करें। पितरों की मुक्ति के लिए गीता के सातवें अध्याय का पाठ करें। इस दिन सात्विक भोजन करें और परनिंदा से बचें। शास्त्रों में बताया गया है कि जो सात्विक आचरण करते हैं उन्हें भी पुण्य की प्राप्ति होती है।

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