देवों के देव महादेव || Vaibhav Vyas


 देवों के देव महादेव

देवों के देव महादेव के जितने नाम हैं, उतने ही रूप हैं और हर रूप से नया वरदान मिलता है। वैसे तो भोलेनाथ के बहुत-से रूप और नामों की महिमा है, यहां हम शिव के 6 मुख्य रूपों के बारे में चर्चा करते हैं जिसमें उनके नाम-रूप से मिलने वाला प्रभाव के बारे में बताया गया है। 

शिव जी का पहला रूप- महादेव - सबसे पहले शिव ने ही अपने अंशों से तमाम देवताओं को जन्म दिया। शिव ने अपने ही अंश से शक्ति को जन्म दिया। सभी देवी देवताओं के सृजनकर्ता होने से शिव को महादेव कहते हैं। महादेव रूप की उपासना से सभी देवी-देवताओं की पूजा का फल मिलता है।

शिव जी का दूसरा रूप - आशुतोष - भोलेनाथ भक्तों से बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं. न कोई पाखंड और न कोई कर्मकांड। बस भक्त के मन की मधुर भावनाएं शिव को निहाल कर देती हैं और प्रसन्न होकर महादेव अपने भक्तों को मनचाहा वरदान देते हैं तभी तो इन्हें आशुतोष कहा जाता है। शिव जी अपने भक्तों पर बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं। शिव के बहुत जल्दी प्रसन्न होने के कारण उन्हें आशुतोष कहा जाता है। शिव के आशुतोष रूप की उपासना से तनाव दूर होता है। आशुतोष की आराधना से मानसिक परेशानियां मिट जाती है। सोमवार को शिवलिंग पर इत्र और जल चढ़ाने से प्रसन्न होते हैं आशुतोष। इस रूप की पूजा में शिव के ऊँ आशुतोषाय नम: मंत्र का जाप करना श्रेयष्कर है।

शिव जी का तीसरा रूप- रूद्र - सृष्टि के आदि भी शिव हैं और अंत भी शिव ही हैं। उग्र रूप में रुद्र और मंगलकारी रूप में शिव। संसार के संहारक भी हैं भगवान शिव, इनके इसी रूप को रुद्र कहते हैं। शिव का ये रूप जीवन को सत्य के करीब ले जाता है। शिव में संहार की शक्ति होने से उनका एक नाम रूद्र भी है। उग्र रूप में शिव की उपासना रूद्र के रूप में की जाती है। शिव जी का ये रूप इंसान को जीवन के सत्य के दर्शन कराता है। रूद्र रूप में शिव वैराग्य भाव जगाते हैं। सोमवार को शिवलिंग पर कुश का जल चढ़ाकर रूद्र की पूजा होती है। रूद्र रूप की उपासना का मंत्र है - ऊँ नमो भगवते रुद्राय:।

शिव जी का चौथा रूप- नीलकंठ - कभी तांडव करके प्रलय मचाते हैं शिवशंकर तो कभी संसार की रक्षा करने के लिए हलाहल विष पी जाते हैं। संसार के जनक शिव के इस रूप की महिमा ही अनोखी है. इस रूप में शिव अपने भक्तों की हर हाल में रक्षा करते हैं। संसार की रक्षा के लिए शिव ने समुद्र मंथन से निकला हलाहल विष पिया - हलाहल विष पीने से शिव जी का कंठ नीला हो गया, शिव जी के इस रूप को नीलकंठ कहा जाता है। नीलकंठ रूप की उपासना करने से शत्रु बाधा दूर होती है। नीलकंठ रूप की उपासना से साजिश और तंत्र मंत्र का असर नहीं होता। सोमवार को शिवलिंग पर गन्ने का रस चढ़ाकर होती है नीलकंठ की पूजा। नीलकंठ रूप की उपासना का मंत्र है - ऊँ नमो नीलकंठाय।

शिव जी का पांचवां रूप - मृत्युंजय - शिव का एक रूप मृत्यु पर भी विजय दिलाता है इसीलिए उनके इस रूप को मृत्युंजय कहा गया है। शिव के मृत्युंजय रूप की उपासना से मृत्यु को भी मात दी जा सकती है। मृत्युंजय रूप में शिव अमृत का कलश लेकर भक्तों की रक्षा करते हैं। इनकी आराधना से अकाल मृत्यु से बचा जा सकता है। मृत्युंजय की पूजा से आयु रक्षा, सेहत और ग्रह बाधा से मुक्ति दिलाता है। सोमवार को शिवलिंग पर बेल पत्र और जलधारा अर्पित करे। मृत्युंजय स्वरूप का मंत्र है - ऊँ हौं जूं स: आदिदेव महादेव तीनों लोकों के स्वामी हैं।

शिव जी का छठां रूप - गौरीशंकर - मां गौरी और शिव शंकर के एकाकार होने से शिव का गौरीशंकर रूप बनता है। इस रूप की उपासना से सुखी वैवाहिक जीवन का आनंद मिलता है। गौरीशंकर के मंत्र के जाप से शादी में आ रही हर अड़चन खुद-ब-खुद दूर हो जाती है। मां गौरी और शिव का संयुक्त रूप है गौरीशंकर स्वरूप - इस स्वरूप की उपासना से शीघ्र विवाह होता है - गौरीशंकर स्वरूप में शिव दाम्पत्य जीवन को सुखी बनाते हैं। सोमवार को शिवलिंग पर पंचामृत चढ़ाने से प्रसन्न होते हैं गौरीशंकर। गौरीशंकर रूप की पूजा का मंत्र है- ऊँ गौरीशंकराय नम:। शिव के हर रूप से अलग वरदान मिलता है। शिव के नाम में हर समस्या का समाधान मिलता है तो बस भोलेनाथ के इन रूपों की उपासना कीजिए और अपने सारे तनाव और सारी चिंताओं से मुक्त हो जाइए।

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