हिंदू धर्म में हर तिथि का अपना महत्व है। भाद्रपद माह में पडऩे वाली अमावस्या इस बार शनिवार के दिन पड़ रही है। मान्यता है कि इस दिन शनि देव और पितरों की पूजा की जाती है। ऐसा करने से पितर प्रसन्न होकर वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। अमावस्या तिथि को पितरों की आत्मशांति, दान-पुण्य और कालसर्प दोष दूर करने के लिए महत्वपूर्ण माना गया है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद माह भगवान श्री कृष्ण की भक्ति और श्री गणेश जी की पूजा को समर्पित है। भाद्रपद माह में आने वाली अमावस्या का भी विशेष महत्व है। इस दिन कुश एकत्रित किया जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन धार्मिक कार्यों, श्राद्ध आदि में इस्तेमाल होने वाली घास को एकत्र किया जाए, तो पुण्य की प्राप्ति होती है।
पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या 26 अगस्त 12 बजकर 23 मिनट पर आरंभ होगी, और 27 अगस्त दोपहर 01 बजकर 46 मिनट तक रहेगी। मान्यताओं के अनुसार उदयातिथि के आधार पर भाद्रपद अमावस्या 27 अगस्त, शनिवार के दिन है। इस दिन पीपल के पेड़ की पूजा का विधान है। पीपल की पूजा से पितृ और शनि देव दोनों को प्रसन्न किया जा सकता है।
तिथि विशेष पर बनने वाले योग में इस बार भाद्रपद अमावस्या के दिन शिव योग का निर्माण हो रहा है। इस दिन प्रात: काल से लेकर अगले दिन 28 अगस्त सुबह 02 बजकर 7 मिनट तक शिव योग है। मान्यता है कि इस योग में किया गया कार्य शुभ फल देता है। इस दिन शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 57 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 48 मिनट तक है। वहीं, इस दिन राहु काल सुबह 09 बजकर 09 मिनट से शुरू होगा और सुबह 10 बजकर 46 मिनट तक रहेगा।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पितरों की आत्मशांति के लिए अमावस्या का दिन बहुत अच्छा माना जाता है. इसलिए भाद्रपद अमावस्या के दिन पितरों की शांति के लिए किसी पवित्र नदी के किनारे पिंडदान और दान-पुण्य किया जाता है। ऐसा करने से व्यक्ति का पितृ दोष समाप्त होता है। पितरों को शांति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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