अमावस्या पर स्नान-दान-पुण्य का विशेष महत्व || Vaibhav Vyas


 अमावस्या पर स्नान-दान-पुण्य का विशेष महत्व

हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि का विशेष महत्व होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास में पडऩे वाली अमावस्या को भादौ या भाद्रपद अमावस्या कहा जाता है। भाद्रपद अमावस्या के दिन धार्मिक कार्यों के लिए कुशा एकत्रित की जाती है, इसलिए इसे कुशग्रहणी अमावस्या के नाम से भी जानते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन पवित्र नदी में स्नान, दान और पितरों का तर्पण करने से जीवन में सुख-शांति व समृद्धि आती है। इस साल भाद्रपद अमावस्या 27 अगस्त 2022, शनिवार को मनाई जाएगी। शनिवार के दिन अमावस्या पडऩे के कारण शनिचरी अमावस्या का योग बन रहा है।

शास्त्रों के अनुसार, भादो अमावस्या भगवान कृष्ण को समर्पित होती है। अमावस्या पूजा के लिए कुशा (हरी घास) का इस्तेमाल किया जाता है। अमावस्या तिथि 26 अगस्त, शुक्रवार को दोपहर 12 बजकर 24 मिनट पर प्रारंभ होगी, जो कि 27 अगस्त, शनिवार को दोपहर 01 बजकर 47 मिनट पर समाप्त होगी।

शनिदेव को प्रसन्न करने के उपाय- शनिचरी अमावस्या तिथि पर शनिदेव की पूजा का विधान है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, भादो अमावस्या को शनि ग्रह से संबंधित चीजें जैसे काला कंबल, काले तिल और सरसों के तेल का दान करना शुभ माना गया है। मान्यता है कि इस दिन शनि मंदिर में जाकर शनि मंत्र और शनि स्त्रोत का पाठ करने से कुंडली में शनि ग्रह की स्थिति मजबूत होती है। इस दिन यथासंभव जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए और गरीबों को भोजन कराने से शनि देव शीघ्र प्रसन्न होने वाले रहते हैं।

मान्यता है कि अगर किसी जरूरी काम में सफलता नहीं मिल पा रही हो तो भादौ अमावस्या के दिन किसी गौशाला में हरी घास या धन का दान करना चाहिए।

अमावस्या के दिन किसी भी नदी-सरोवर में स्वयं या किसी योग्य जानकार ब्राह्मण से पितरों के निमित तर्पण करने से पितरों का आशीर्वाद मिलने वाला रहता है, जिससे पितर दोष से संबंधित समस्याओं से मुक्ति भी मिलने वाली रहती है। पितरों के निमित तर्पण करने के पश्चात ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और दक्षिणा देनी चाहिए।

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