ऊँ नम: शिवाय शक्तिशाली मंत्र || Vaibhav Vyas


 ऊँ नम: शिवाय शक्तिशाली मंत्र

ऊँ नम: शिवाय इस मंत्र से संसार में भला कौन नहीं परिचित होगा। इसे पंचाक्षर मंत्र के नाम से भी जाना जाता है। पंचाक्षर मंत्र नम: शिवाय है लेकिन प्रणव ऊँ के साथ इसे संपुट करके जप करने पर फल पूर्ण हो जाता है। ओम नम: शिवाय मंत्र एक सिद्ध मंत्र है, जिसे कहीं भी कभी भी जपा सकता है। मंत्र की शक्ति तो उसकी ध्वनि है, उच्चारण में दोनों एक हैं। नासिका की ध्वनि आनी चाहिए। ऊँ संपुट के साथ ऊँ नम: शिवाय को षडाक्षर यानी छह अक्षरों वाला भी कई बार कहा जाता है। ऊँ नम: शिवाय मंत्र की महिमा अपरम्पार मानी गई है, जिसने भी इसे अपनाया वो सदैव संकटों-कष्टों से दूर ही रहा।

शिव महापुराण और लिंग महापुराण के अनुसार ओम नम: शिवाय मंत्र के माहात्म्य का वर्णन करोड़ वर्षों में भी संभव नहीं हो पाया है। शिवजी इसका कारण भी बताते हैं।  पार्वतीजी को बालिका के रूप में शिवजी की सेवा करते लंबा समय हो गया पर शिवजी ध्यान में ही रहते। कभी पार्वतीजी की ओर दृष्टि भी न डाली। पार्वतीजी पूरे मनोयोग से उनकी सेवा कर रही थीं। वह उन्हें पति रूप में प्राप्त करने की इच्छुक थीं पर अनंतयोगी शिवजी ध्यानलीन थे।

एक बार पार्वतीजी बहुत विकल हो गईं। उन्हें लगता ही न था कि शिवजी की प्राप्ति हो सकती है, तभी वहां नारदजी का प्रवेश हुआ। नारदजी ने पार्वतीजी को बताया कि आप भगवान शिव की शक्ति हैं। आपने यह शरीर शिव की शिवा होने के लिए ही धारण किया है। अभी शिवजी यह नहीं चाहते कि आपको आपकी शक्तियों का परिचय हो। इसलिए आप स्वयं को पहचान नहीं पा रही हैं और व्यथित हैं। आप शिवजी के लिए ही बनी हैं अत: उन्हें प्राप्त करने की आशा न त्यागें। यह सुनकर पार्वतीजी प्रसन्न हो गईं।

उन्होंने नारदजी से पूछा- देवर्षे आपकी बात सुनकर मेरे मन को बड़ा आनंद हुआ है। आप सभी रहस्यों से परिचित हैं। मुझे यह बताएं कि शिवजी को शीघ्र प्रसन्न करने के लिए मुझे क्या करना चाहिए।

नारदजी ने पार्वतीजी को विधि-विधान के साथ पंचाक्षर मंत्र नम: शिवाय दिया और कहा कि इसे प्रणव ऊं के साथ जप करें। भगवान शिव को प्रसन्न करने का सबसे सुलभ और सरल साधन है- ओम नम: शिवाय का जप।

नारदजी से सारे विधि-विधान समझकर पार्वतीजी ने अनंत काल तक इस मंत्र का जप किया। एक तपस्विनी की तरह उन्होंने असंख्य कष्ट सहते हुए उमा, अपर्णा भी हो गईं। इसी वजह से इस मंत्र की महिमा युगों से युगों से एक जैसी ही बनी हुई है। जिसने भी इसे भक्ति भाव से अपनाया उसका बेड़ा पार हुआ है और शिव जी का आशीर्वाद मिला है।

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