चतुर्थी व्रत से होती मनोकामनाएं पूर्ण || Vaibhav Vyas


 चतुर्थी व्रत से होती मनोकामनाएं पूर्ण

भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को बहुला चतुर्थी कहते हैं। इस बार ये तिथि 15 अगस्त, सोमवार को है। इस दिन मुख्य रूप से भगवान श्रीगणेश की पूजा की जाती है। इस बार ये तिथि सोमवार को होने से इसका महत्व और भी बढ़ गया है क्योंकि सोमवार भगवान शिव का वार है और चतुर्थी भगवान श्रीगणेश की तिथि। मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है। इस दिन महिलाएं शाम को चंद्रमा देखने के बाद ही अपना व्रत पूर्ण करती हैं।

इस बार चतुर्थी के दिन बनने वाले शुभ योग इस दिन के महत्व को और अधिक बढ़ाने वाले हो जाते हैं, जिससे इस दिन की पूजा और व्रत करने वालों को शीघ्र और शुभ फल की प्राप्ति होने वाली मानी गई है। पंचांग के अनुसार चतुर्थी के पूरे दिन भर उत्तरा भाद्रपद नाम का नक्षत्र रहेगा। सोमवार को उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र होने से गद नाम का शुभ योग इस दिन बन रहा है। इसके अलावा इस दिन धृति नाम का एक अन्य शुभ योग भी रहेगा। इस समय बुध ग्रह सिंह राशि में रहेगा। इस राशि में ये ग्रह शुभ फल प्रदान करता है। इस ग्रह का संबंध भगवान श्रीगणेश से माना जाता है। बहुला चतुर्थी पर बुध ग्रह का सिंह राशि में होना शुभ रहेगा।

चतुर्थी के दिन सुबह महिलाएं स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें। इसके बाद घर में किसी साफ स्थान पर चौकी लगाएं पर उसके ऊपर लाल-सफेद वस्त्र बिछाकर भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। इसके बाद धूप, दीप, गंध (अबीर, गुलाल, कुंकुम आदि), फूल, प्रसाद आदि सोलह चीजों से भगवान श्रीगणेश की पूजा करें। दिन भर बिना कुछ खाए-पिए रहें। संभव न हो तो फलाहार कर सकते हैं। इस दिन जितना कम हो सके, उतना कम बोलें। शाम होने पर फिर से स्नान कर इसी पूजा विधि से भगवान श्रीगणेश की उपासना करें। इसके बाद चन्द्रमा के उदय होने पर शंख में दूध, दूर्वा, सुपारी, गंध, अक्षत से भगवान श्रीगणेश, चंद्रदेव और चतुर्थी तिथि को अध्र्य दें। इस प्रकार बहुला चतुर्थी का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूरी व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं। यह व्रत संतान दाता तथा धन को बढ़ाने वाला है। इस व्रत से भगवान श्रीगणेश की कृपा हम पर बनी रहती है। इस दिन व्रत करने वालों को इससे संबंधित कथा का श्रवण-वाचन करने से शीघ्र फल की प्राप्ति होती है।

पूर्वकाल में राजाओं में श्रेष्ठ राजा नल था उसकी रूपवती रानी का नाम दमयन्ती था। शाप वश राजा नल को राज्य खोना पड़ा और रानी के वियोग से कष्ट सहना पड़ा। तब दमयन्ती ने इस व्रत के प्रभाव से अपने पति को प्राप्त किया। राजा नल के ऊपर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा था। डाकुओं ने उनके महल से धन, गजशाला से हाथी और घुड़शाला से घोड़े हरण कर लिये, तथा महल को अग्नि से जला दिया। राजा नल भी जुआ खेलकर सब हार गये। नल असहाय होकर रानी के साथ वन को चले गए। शाप वश स्त्री से भी वियोग हो गया कहीं राजा और कहीं रानी दु:खी होकर देशाटन करने लगे।

एक समय वन में दमयन्ती को महर्षि शरभंग के दर्शन हुए। दमयन्ती ने मुनि को हाथ जोड़ नमस्कार किया और प्रार्थना की प्रभु! मैं अपने पति से किस प्रकार मिलूंगी? शरभंग मुनि बोले- दमयन्ती! भादों की चौथ को एकदन्त गजानन की पूजा करनी चाहिए। तुम भक्ति और श्रद्धापूर्वक गणेश चौथ का व्रत करो तुम्हारे स्वामी तुम्हें मिल जाएंगे।

शरभंग मुनि के कहने पर दमयन्ती ने भादों की गणेश चौथ को व्रत आरम्भ किया और सात मास में ही अपने पुत्र और पति को प्राप्त किया। इस व्रत के प्रभाव से नल ने सभी सुख प्राप्त किये। विघ्न का नाश करने वाला तथा सुखों को देने वाला यह सर्वोतम व्रत है।

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