सोमवार व्रत के दिन कथा का श्रवण-वाचन विशेष फलदायी || Vaibhav Vyas


 सोमवार व्रत के दिन कथा का श्रवण-वाचन विशेष फलदायी

धार्मिक दृष्टिकोण से श्रावण मास का विशेष महत्व माना जाता है। यह महीना भगवान शिव को समर्पित है क्योंकि उन्हें यह महीना काफी प्रिय है। इस माह की शुरुआत आषाढ़ पूर्णिमा के ठीक बाद होती है। इस साल यह महीना 14 जुलाई 2022 से शुरू हो रहा है। चूंकि यह महीना भगवान शिव को समर्पित है, मान्यताओं के अनुसार इस महीने के दौरान महादेव की पूजा करने से व्यक्ति को कई तरह से आशीर्वाद मिलने वाला होता है।  पुरुष और महिलाएं सावन सोमवार का व्रत रखकर भगवान शिव की पूजा करते हैं। इस माह सावन के चार सोमवार पड़ेंगे। हिंदू मान्यताओं में उपवास का बड़ा धार्मिक महत्व है। हर देवता को समर्पित एक कथा है, जिसे पढ़े बिना उपवास का महत्व समाप्त हो जाता है। सोमवार भगवान शिव को समर्पित है और इस प्रकार, सावन के दौरान सोमवार को उपवास करना महत्वपूर्ण है। ऐसा माना जाता है कि अपने व्रत को फलदायी बनाने के लिए सोमवार के दिन भगवान शिव की कथा का श्रवण-वाचन करने से व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होने वाला रहता है और शिव कृपा बरसती है।

इस बार सावन सोमवार की तिथियां- पहला सावन सोमवार-18 जुलाई 2022, दूसरा सावन सोमवार- 25 जुलाई 2022, तीसरा सावन सोमवार - 01 अगस्त 2022 और चौथा सावन सोमवार- 08 अगस्त 2022 को रहेगा।

सोमवार के दिन व्रत-उपवास रखने वालों को इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान से निवृत्त हो जाना चाहिए। पूरे घर में गंगा जल या पवित्र जल छिड़कें। घर में ही किसी पवित्र स्थान पर भगवान शिव की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। अगर आपके घर में शिवलिंग स्थापित है तो अभिषेक से पूजा शुरू करनी चाहिए। अभिषेक के बाद बेलपत्र, समीधा, दूब, कुशा, कमल, नीलकमल, जवाफूल कनेर, राई के फूल आदि से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। भगवान शिव का ध्यान करें। ध्यान के बाद ऊँ नम: शिवाय मंत्र जाप से शिव की पूजा करें और ऊँ शिवाय नम: से मातापार्वती की पूजा करें। पूजा के बाद व्रत कथा सुनें। इसके बाद आरती करें और प्रसाद बांटें।

सोमवार व्रत कथा- एक शहर में एक साहूकार रहता था। उसके घर में पैसों की कोई कमी नहीं थी लेकिन उसके कोई संतान नहीं थी, जिससे वह बहुत दुखी रहता था। पुत्र की कामना करते हुए वह हर सोमवार को भगवान शिव का व्रत किया करते थे और शिव और पार्वती जी की पूरी भक्ति के साथ शिवालय में पूजा करते थे। उनकी भक्ति देखकर माता पार्वती प्रसन्न हुई और उन्होंने भगवान शिव से साहूकार की इच्छा पूरी करने का अनुरोध किया। पार्वती जी की इच्छा सुनकर भगवान शिव ने कहा कि हे पार्वती! इस संसार में प्रत्येक प्राणी को उसके कर्मों के अनुसार फल मिलता है और उसके भाग्य में जो कुछ भी होता है उसे भुगतना पड़ता है। लेकिन पार्वती जी ने साहूकार की आस्था को बनाए रखने की इच्छा पूरी करने की इच्छा व्यक्त की। माता पार्वती के अनुरोध पर शिवजी ने साहूकार को वरदान दिया लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि उनकी संतान अल्पायु होगी और केवल सोलह वर्ष तक ही जीवित रहेगी।

साहूकार माता पार्वती और भगवान शिव की यह बातचीत सुन रहा था। वह पहले की तरह शिव की पूजा करता रहा। कुछ समय बाद साहूकार के एक पुत्र का जन्म हुआ। जब वह बालक ग्यारह वर्ष का हुआ तो उसे पढऩे के लिए काशी भेज दिया गया। साहूकार ने बेटे के मामा को बुलाकर ढेर सारा पैसा दिया और कहा कि तुम इस बच्चे को काशी विद्या प्राप्त करने के लिए ले जाओ और रास्ते में यज्ञ करो। आप जहां भी यज्ञ करें, वहां ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा देकर जाएं।

मामा-भांजे  दोनों एक ही तरह से यज्ञ करते थे और ब्राह्मणों को दक्षिणा दान करते थे और काशी की ओर चले जाते थे। रास्ते में एक नगर था जहाँ नगर के राजा की पुत्री का विवाह होने वाला था लेकिन जिस राजकुमार से उसका विवाह तय हुआ था वह काना था और इस बात की जानकारी राजा को नहीं थी।  राजकुमार ने इस बात का लाभ उठाकर अपने स्थान पर साहूकार के बेटे को दूल्हा बना दिया। लेकिन साहूकार का बेटा ईमानदार था। उसने अवसर का लाभ उठाया और राजकुमारी के दुपट्टे पर लिखा कि तुम मुझसे शादी कर चुके हो लेकिन जिस राजकुमार के साथ तुम्हें भेजा जाएगा वह एक आंख वाला काना है। मैं काशी पढऩे जा रहा हूं। जब राजकुमारी ने चुन्नी पर लिखे शब्दों को पढ़ा तो उसने अपने माता-पिता को यह बात बताई। बारात को छोड़कर राजा ने अपनी बेटी को नहीं छोड़ा। 

उधर साहूकार का लड़का और उसके मामा काशी पहुंचे और वहां जाकर यज्ञ किया। लड़के की उम्र के दिन जब वह 16 वर्ष का था, एक यज्ञ किया गया था। लड़के ने अपने मामा से कहा कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है। मामा ने कहा कि तुम अंदर जाओ और सो जाओ। शिव के वरदान के अनुसार कुछ ही पलों में बच्चे की जान निकल गई। 

मृत भांजे को देख उसके मामा विलाप करने लगे। संयोग से उसी समय शिव और माता पार्वती वहां से जा रहे थे। पार्वती ने भगवान से कहा- प्राणनाथ, मैं इसकी पुकार को सहन नहीं कर सकती। आपको इस व्यक्ति की पीड़ा को दूर करना होगा। जब शिवजी मरे हुए लड़के के पास पहुंचे तो उन्होंने कहा कि यह उसी साहूकार का बेटा है, जिसे मैंने 12 साल की उम्र में वरदान दिया था। अब इसकी उम्र खत्म हो गई है। लेकिन माता पार्वती ने कहा कि हे महादेव कृपा करके इस बच्चे को और उम्र दे, नहीं तो इसके माता-पिता भी मर जाएंगे। शिव के अनुरोध पर, भगवान शिव ने लड़के को जीवित रहने का वरदान दिया। शिव की कृपा से वह बालक जीवित हो गया। 

शिक्षा समाप्त करके जब वह लड़का अपने मामा के साथ अपने नगर लौट रहा था तो दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां उसका विवाह राजकुमारी के साथ हुआ था। उस नगर में भी उसने यज्ञ का आयोजन किया। उस नगर के राजा ने तुरंत उसे पहचान लिया। यज्ञ समाप्त होने पर राजा व्यापारी के बेटे और उसके मामा को महल में ले आए और उन्हें बहुत-सा धन, वस्त्र देकर राजकुमारी के साथ विदा किया।

लड़के के मामा ने नगर में पहुंचते ही एक दूत को घर भेजकर अपने आने की सूचना भेजी। बेटे के जीवित वापस लौटने की सूचना से व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ। व्यापारी और उसकी पत्नी ने स्वयं को एक कमरे में बंद कर रखा था। भूखे-प्यासे रहकर वो दोनों अपने बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो दोनों अपने प्राण त्याग देंगे। व्यापारी अपनी पत्नी के साथ नगर के द्वार पर पहुंचा। अपने बेटे के जीवित होने और उसके विवाह का समाचार सुनकर उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। 

उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के सपने में आकर कहा- 'हे श्रेष्ठी! मैंने तेरे सोमवार व्रत करने और व्रत कथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लंबी आयु प्रदान की है।Ó ऐसा सुनकर व्यापारी काफी प्रसन्न हुआ।

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