मां की पूजा से पाएं मनोवांछित फल || Vaibhav Vyas


 मां की पूजा से पाएं मनोवांछित फल

नवरात्रि का चौथा दिन मां कूष्मांडा को समर्पित है। इस दिन मां कूष्मांडा की उपासना की जाती है। मां कूष्मांडा यानी कुम्हड़ा। कूष्मांडा एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है कुम्हड़ा, यानी कद्दू, पेठा। धार्मिक मान्यता है कि मां कूष्मांडा को कुम्हड़े की बलि बहुत प्रिय है। इसलिए मां दुर्गा का नाम कूष्मांडा पड़ा।

मां कूष्मांडा की पूजा के बाद इस मंत्र का 21 बार जप करें-

सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।

दधाना हस्त पद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥

शास्त्रों में उल्लेख है कि इस मंत्र के जप से सूर्य संबंधी लाभ तो मिलेगा ही, साथ ही साथ, परिवार में सुख-समृद्धि और खुशहाली आएगी। स्वास्थ्य अच्छा रहेगा और आर्थिक उन्नति होगी।

इस दिन की पूजा में मां को प्रिय भोग प्रसाद रूप में अर्पित करने चाहिए। नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा को मालपुआ का प्रसाद अर्पित कर भोग लगाएं। ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि आएगी। साथ ही इस दिन कन्याओं को रंग-बिरंगे रिबन या वस्त्र भेट करने से धन में वृद्धि होगी। 

मां कूष्मांडा की पूजा सच्चे मन से करें। मन को अनहत चक्र में स्थापित करें और मां का आशीर्वाद लें। कलश में विराजमान देवी-देवता की पूजा करने के बाद मां कूष्मांडा की पूजा करें। इसके बाद हाथों में फूल लें और मां का ध्यान करते हुए इस मंत्र का जाप करें-

सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।

दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु।

जीवन में चल रही परेशानियों और समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा के इस  मंत्र का जाप 108 बार अवश्य करें। ऐसा करने से सभी समस्याओं से छुटकारा मिल जाएगा।

दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दारिद्रादि विनाशिनीम्।

जयंदा धनदां कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥

बौद्धिक क्षमता में वृद्धि और परीक्षा में अच्छे परिणाम की इच्छा रखने वाले जातक विद्या प्राप्ति मंत्र का 5 बार जप करना चाहिए-

'या देवी सर्वभूतेषु बुद्धि-रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

किसी भी मनोकामना की पूर्ति के लिए मां को मालपुओं का भोग लगाएं और इस मंत्र का 11 बार जप करें-

जगन्माता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।

चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥

घर में सुख-शांति और समृद्धि बनाए रखने के लिए शांति मंत्र का 21 बार जाप अवश्य करें-

या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

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