देवी कात्यायनी की पूजा से बनते धन प्राप्ति के योग || Vaibhav Vyas


 देवी कात्यायनी की पूजा से बनते धन प्राप्ति के योग

गुप्त नवरात्रि की षष्ठी तिथि की देवी कात्यायनी हैं। इस दिन माता को शहद का भोग लगाना चाहिए। इससे धन प्राप्ति के योग बनते हैं। देवी कात्यायनी की पूजा करते समय नारियल, कलश, गंगाजल, कलावा, रोली, चावल, चुन्नी, शहद, अगरबत्ती, धूप, दीया और घी आदि का प्रयोग करना चाहिए। मान्यता है कि मां कात्यायनी को प्रसन्न करने के लिए 3 से 4 पुष्प लेकर निम्नलिखित मंत्र का जप 108 बार करना फलदायी होता है। मंत्र जप के बाद उन्हें पुष्प अर्पित करना चाहिए।

कंचनाभा वराभयं पद्मधरां मुकटोज्जवलां।

स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनी नमोस्तुते॥

षष्ठी तिथि के दिन देवी के पूजन में मधु का महत्व बताया गया है। इस दिन प्रसाद में मधु यानि शहद का प्रयोग करना चाहिए। माता को मालपुआ का भोग भी प्रिय है। इनकी पूजा से साधक सुंदर रूप प्राप्त होता है। यह देवी विवाह में आने वाली बाधाओं को दूर करती हैं। देवी कात्यायिनी रोग और शोक को दूर करके आयु और समृद्धि भी प्रदान करती हैं।

चंद्रहासोज्ज्वलकरा, शार्दूलवरवाहना।

कात्यायनी शुभं दद्यात्, देवी दानवघातनी।।

इस मंत्र से देवी का ध्यान करना चाहिए।

पूजा पंडालों में नवरात्र की छठी तिथि को शाम के समय गाजे बाजे के साथ माता की डोली निकलती है और जिस बेल के वृक्ष में दो बेल एक साथ लगे होते हैं। उनकी पूजा करके उनको पूजा में आमंत्रित किया जाता है। नवरात्र के सातवें दिन सुबह इस बेल को डोली में बैठाकर लाया जाता है और इसी बेल की पूजा करके देवी के नेत्रों में ज्योति का संचार किया जाता है। इस विधि के बाद पूजा पंडालों में देवी के मुख पर लगा आवरण हटा दिया जाता है और भक्त माता के रूप को निहार कर धन्य होते हैं।

देवी के छठवे स्वरूप माता कात्यायनी की पूजा भगवान राम और श्रीकृष्ण ने भी की थी। ऐसी कथा है कि ब्रज की गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण को पाने के लिए देवी के इस स्वरूप की पूजा की थी। देवी भागवत, मार्कण्डेय और स्कंद पुराण में देवी कात्यायनी की कथा मिलती है। पुराणों में बताया गया है कि ऋषि कात्यायन माता के भक्त थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। इन्होंने माता की तपस्या की और उनसे वरदाना मांगा कि आप मुझे पुत्री रूप में प्राप्त हों। इस बीच महिषासुर का अत्याचार बढ़ता जा रहा था। उसने देवताओं को स्वर्ग से भगा दिया था। देवाताओं के क्रोध से एक तेज प्रकट हुआ जो कन्या रूप में था। उस तेज ने ऋषि कात्यायन के घर पुत्री रूप में जन्म लिया। ऋषि जानते थे कि, माता ही वरदान के कारण पुत्री रूप में उनके घर प्रकट हुई हैं। ऋषि ने देवी की प्रथम पूजा की और वह देवी कात्यायन ऋषि की पुत्री होने के कारण कात्यायनी कहलाईं।

देवी कात्यायनी के प्रकट होने का मूल उद्देश्य महिषासुर का अंत था। आश्विन शुक्ल नवमी तिथि के दिन ऋषि द्वारा पूजित होने के बाद देवी ने कहा कि उनका प्राकट्य महिषासुर का अंत करने के लिए हुआ है। इसके बाद देवी ने नवमी और दशमी तिथि को महिषासुर से युद्ध किया। दशमी तिथि के दिन देवी ने शहद से भरे पान को खाकर महिषासुर का वध कर दिया। इसके बाद देवी कात्यायनी महिषासुर मर्दनी भी कहलायीं।

मां कात्यायनी के स्वरूप की बात की जाए तो इनका शरीर सोने जैसा सुनहरा और चमकदार है। मां 4 भुजाधारी और सिंह पर सवार हैं। उन्होंने एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में कमल का पुष्प धारण किया हुआ है। अन्य दो हाथ वरमुद्रा और अभयमुद्रा में हैं। यह देवी माता के स्नेह और शक्ति का सम्मिलित रूप हैं।

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