मां कालरात्रि की पूजा से भय नहीं सताते || Vaibhav Vyas


 मां कालरात्रि की पूजा से भय नहीं सताते

नवरात्रि के सातवें दिन मां दुर्गा के सातवें स्वरूप कालरात्री की पूजा का विधान है। नवरात्रि में सप्तमी तिथि का विशेष महत्व बताया गया है। मां कालरात्रि ने असुरों का वध करने के लिए यह रूप लिया था। मान्यता है कि मां कालरात्रि की पूजा करने वाले भक्तों को भूत, प्रेत या बुरी शक्ति का भय नहीं सताता। मां कालरात्रि की नाक से आग की भयंकर लपटें निकलती हैं। मां कालरात्रि की सवारी गर्धव यानि गधा है। शक्ति का यह रूप शत्रु और दुष्टों का संहार करने वाला है। मान्यता है कि मां कालरात्रि ही वह देवी हैं, जिन्होंने मधु कैटभ जैसे असुर का वध किया था। माना जाता है कि महा सप्तमी के दिन पूरे विधि-विधान से मां कालरात्रि की पूजा करने पर मां अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। मां कालरात्रि को गुड़ या गुड़ से बनी चीजों का भोग लगाया जाता है।

नवरात्रि के सातवें दिन स्नान आदि से निवृत हो जाएं और मां कालरात्रि की पूजा आरंभ करने से पहले कुमकुम, लाल पुष्प, रोली लगाएं. माला के रूप में मां को नींबुओं की माला पहनाएं और उनके आगे तेल का दीपक जलाएं. मां को लाल फूल अर्पित करें।

मां कालरात्रि मंत्र-

या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

गुड़ से बना मालपुआ- नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। सभी राक्षसों के लिए कालरूप बनकर आई मां दुर्गा कालरात्रि रूप में प्रकट हुई थीं। मान्यता है कि मां कालरात्रि अपने भक्तों को काल से बचाती हैं यानी मां के उपासक की अकाल मृत्यु नहीं होती है और उन्हें भूत, प्रेत या बुरी शक्तियों का भय नहीं सताता। मां कालरात्रि को उनके प्रिय गुड़ से बने मालपुआ का भोग लगा सकते हैं।

मां कालरात्रि की पूजा मंत्रों के जाप द्वारा भी की जा सकती है, जिनके जाप से शुभ फलदायी फल प्राप्त होकर मां का आशीर्वाद मिलता है।

जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्ति हारिणि।

जय सार्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते॥

ऊँ ऐं सर्वाप्रशमनं त्रैलोक्यस्या अखिलेश्वरी।

एवमेव त्वथा कार्यस्मद् वैरिविनाशनम् नमो सें ऐं ऊँ।।

ऊँ यदि चापि वरो देयस्त्वयास्माकं महेश्वरि।

संस्मृता संस्मृता त्वं नो हिंसेथा: परमाऽऽपद: ऊँ।।

ऊँ ऐं यश्चमत्र्य: स्तवैरेभि: त्वां स्तोष्यत्यमलानने।

तस्य वित्तीद्र्धविभवै: धनदारादि समप्दाम् ऐं ऊँ।

ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं दुर्गति नाशिन्यै महामायायै स्वाहा।।

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