गुरु पूर्णिमा पर गुरुओं का पूजन-सम्मान || Vaibhav Vyas


 गुरु पूर्णिमा पर गुरुओं का पूजन-सम्मान

गुरु पूर्णिमा हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। इस दिन पुराणों की रचना और वेदों को विभाजन करने वाले वेद व्यास जी का जन्म हुआ था। इस दिन को व्यास जयंती के नाम से भी जाना जाता है। इस वर्ष 13 जुलाई को गुरु पूर्णिमा हैं। इस दिन गुरुओं का पूजन और सम्मान किया जाता है।

गुरु पूर्णिमा के दिन गुरुओं की पूजा और उनका सम्मान करने की परंपरा है। शास्त्रों में भी गुरु को भगवान से ऊपर का दर्जा दिया गया है। ऐसे में गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरुओं और बड़ों का आशीर्वाद लेना चाहिए। गुरुओं का स्थान ईश्वर से ऊपर बताया गया है। गुरु हमें जीवन का सच्चा मार्ग दिखाने में मदद करते हैं। इस दिन जन्मे वेदव्यास जी ने ग्रंथों की रचना करके इस संसार में ज्ञान का प्रसार किया और सत्य का मार्ग दिखाया है।

पूर्णिमा तिथि 13 जुलाई बुधवार को सुबह 4 बजे से प्रारंभ होगी और 14 जुलाई की रात 12 बजकर 6 मिनट पर तिथि समाप्त होगी। इस दिन गुरुओं की पूजा करने का विशेष महत्व है। इस दिन सबसे पहले उठकर स्नान करें इसके बाद साफ कपड़े पहने और फिर अपने घर के मंदिर में भगवान को प्रणाम करते हुए उन्हें फूल अर्पित करें और फिर सभी का तिलक करें। इसके बाद अपने गुरु के घर जाएं और उनके पैर छूकर उनका आशीर्वाद करें।

इस दिन कुछ सामग्री को पूजा में शामिल करना बेहद जरूरी है। गुरुजनों की पूजा के लिए पान का पत्ता, पीला कपड़ा, पीला मिष्ठान, नारियल, पुष्प और इलायची, कपूर लौंग जरूर शामिल करें।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ग्रीष्म संक्रांति के बाद आषाढ़ मास में आने वाली पहली पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस पवित्र दिन पर शिव ने -जिन्हें आदियोगी या पहला योगी कहते हैं- अपने पहले सात शिष्यों, सप्तऋषियों को सबसे पहले योग का विज्ञान प्रदान किया था। इस प्रकार, आदियोगी इस दिन आदिगुरु यानी पहले गुरु बने। सप्तऋषि इस ज्ञान को लेकर पूरी दुनिया में गए, और आज भी, धरती की हर आध्यात्मिक प्रक्रिया के मूल में आदियोगी द्वारा दिया गया ज्ञान है।

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