एकादशी पर विधि-विधान से करें पूजा-अर्चना || Vaibhav Vyas


 एकादशी पर विधि-विधान से करें पूजा-अर्चना

हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का बहुत अधिक महत्व होता है। हर माह में दो बार एकादशी पड़ती है। एक कृष्ण पक्ष में और एक शुक्ल पक्ष में। साल में कुल 24 एकादशी पड़ती है। एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधि- विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है। आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी 10 जुलाई को है। इस एकादशी को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है।

देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु चार माह तक विश्राम करते हैं। भगवान विष्णु कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी तक विश्राम करते हैं। इस समय को चातुर्मास के नाम से भी जाना जाता है।

देवशयनी एकादशी मुहूर्त- एकादशी तिथि जुलाई 09, 2022 को 04.39 बजे से प्रारम्भ होकर जुलाई 10, 2022 को 02.13 बजे समाप्त होगी।

देवशयनी एकादशी पूजा- विधि- एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं। घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें। भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें। भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें। अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें। भगवान की आरती करें। भगवान को भोग लगाएं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें। ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं। इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें। इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें। 

देवशयनी एकादशी महत्व- इस पावन दिन व्रत रखने से सभी तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी का व्रत रखने से मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।

एकादशी के दिन पूजा-अर्चना करते समय पूजा सामग्री की तैयारी करने के पश्चात विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए। इसके लिए सबसे पहले श्री विष्णु जी का चित्र अथवा मूर्ति को पंचामृत से स्नान करवाने के पश्चात पुष्प, नारियल, सुपारी, फल, लौंग, धूप-दीप, घी, पंचामृत, अक्षत, तुलसी दल, चंदन और प्रसाद के रूप में मिष्ठान अर्पित करना चाहिए। इस दिन व्रत करने वालों को एकादशी संबंधी व्रत कथा का श्रवण-वाचन अवश्य करना चाहिए जिससे एकादशी व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होने वाला रहता है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी व्रत के पुण्य के समान और कोई पुण्य नहीं है । जो पुण्य सूर्यग्रहण में दान से होता है, उससे कई गुना अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है। जो पुण्य गौ-दान सुवर्ण-दान, अश्वमेघ यज्ञ से होता है, उससे अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है। एकादशी करने वालों के पितर नीच योनि से मुक्त होते हैं और अपने परिवारवालों पर प्रसन्नता बरसाते हैं। इसलिए यह व्रत करने वालों के घर में सुख-शांति बनी रहती है। धन-धान्य, पुत्रादि की वृद्धि होती है। कीर्ति बढ़ती है, श्रद्धा-भक्ति बढ़ती है, जिससे जीवन रसमय बनता है।

Comments