नवरात्रि में मां की पूजा कर पाएं आशीष || Vaibhav Vyas


 नवरात्रि में मां की पूजा कर पाएं आशीष

हिंदू पंचांग के अनुसार पहली गुप्त नवरात्रि आषाढ़ शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से नवमी तिथि तक मनाई जाती है। इस बार ये तिथि 30 जून से शुरू होकर 8 जुलाई तक मनाई जाएगी। इस गुप्त नवरात्री के अवसर पर 10 महाविद्याओं की पूजा का विधान है। ये समय महाकाली एवं भगवान शिव यानी कि शाक्त और शैव की पूजा करने वालों के लिए विशेष माना जाता है।

गुप्त नवरात्रि में गुप्त विद्याओं की सिद्धि के लिए विशेष साधनाएं की जाती है। इन दिनों तंत्र साधना का विशेष महत्व होता है। इन तंत्र साधनाओं को गुप्त रूप से किया जाता है, इसलिए इसे गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। इस दुर्गा माता को शक्ति का रूप माना जाता है, इसलिए, इस दौरान 9 दिनों तक संकल्प लेकर व्रत रखना होता है। इस दौरान प्रत्येक दिन सुबह और शाम को मां दुर्गा की आराधना करनी होती है। इसके साथ अष्टमी या नवमी पर कन्या पूजन कर व्रत का पारणा किया जाता है। गुप्त नवरात्रि में दुर्गा चालीसा और दुर्गा सप्तशती का पाठ भी करना होता है। गुप्त रूप से देवी मां और महाशक्ति की आराधना करने के चलते ही इन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है।

गुप्त नवरात्रि में तांत्रिक, साधक या अघोरी तंत्र-मंत्र और सिद्धि प्राप्त करने के लिए मां दुर्गा की साधना करते हैं। गुप्त नवरात्रि में पूजा और मनोकामना जितनी ज्यादा गोपनीय होंगी, सफलता उतनी ही ज्यादा मिलेगी। गुप्त नवरात्रि की दस देवियां काली, तारा, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला है। इन 10 महाविद्याओं का संबंध अलग-अलग देवियों से हैं।

गुप्त नवरात्रि पूजा विधि- शास्त्रों के अनुसार, गुप्त नवरात्रि के दौरान भी चैत्र और शारदीय नवरात्रि की तरह ही घट स्थापना भी की जाती है। गुप्त नवरात्रि के दिन साधक को प्रात:काल जल्दी उठकर स्नान-ध्यान कर लेना चाहिए। देवी दुर्गा की तस्वीर या मूर्ति को एक लाल रंग के कपड़े में रखकर लाल रंग के वस्त्र या फिर चुनरी आदि पहनाकर रखना चाहिए। सुबह-शाम मां दुर्गा की पूजा करें और उन्हें लौंग और बताशे का भोग लगाएं। इसके बाद मां को श्रृंगार का सामान जरूर अर्पित करें। सुबह और शाम दोनों समय पर दुर्गा सप्तशती का पाठ जरूर करें। ऊँ दुं दुर्गायै नम: मंत्र का जाप करें। इसके साथ एक मिट्टी के बर्तन में जौ के बीज रोपें, जिसमें प्रतिदिन उचित मात्रा में जल का छिड़काव करते रहना होता है। मंगल कलश में गंगाजल, सिक्का आदि डालकर उसे शुभ मुहूर्त में आम्रपल्लव और श्रीफल रखकर स्थापित करें। फल-फूल आदि को अर्पित करते हुए देवी की विधि-विधान से प्रतिदिन पूजा करें।

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