एकादशी के दिन करें श्री विष्णु हरि की पूजा || Vaibhav Vyas


 एकादशी के दिन करें श्री विष्णु हरि की पूजा

एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित होता है। हर माह कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में दो एकादशी तिथि पड़ती है। आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है और व्यक्ति को सभी पाप कर्मों से मुक्ति मिलती है। कहा जाता है कि मात्र योगिनी एकादशी के व्रत से 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने जैसे पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इस बार योगिनी एकादशी का व्रत शुक्रवार, 24 जून को रखा जाएगा। योगिनी एकादशी व्रत का फल तभी प्राप्त होता है, जब आप विधि-विधान से इसकी पूजा करते हैं और नियमों का पालन करते हैं।

योगिनी एकादशी मुहूर्त- एकदशी तिथि आरंभ- गुरुवार, 23 जून रात 09.41 बजे एकादशी तिथि समाप्त- शुक्रवार, 24 जून रात 11.12 बजे। एकादशी व्रत पारणा- शनिवार, 25 जून सुबह 05.41 से सुबह 08.12 बजे के मध्य रहेगा।

योगिनी एकादशी पूजा नियम- मान्याओं के अनुसार एकादशी के दिन घर पर चावल और बैंगन नहीं पकाना चाहिए। योगिनी एकादशी के दिन बड़ों का अनादर ना करें, झूठ ना बोले और घर आए किसी भी जरूरतमंद को खाली हाथ ना लौटाएं। एकादशी व्रत के एक दिन पहले यानी दशमी तिथि के दिन से ही ब्रह्मचार्य का पालन करें। एकादशी के दिन घर पर मांस मदिरा का सेवन भूलकर भी नहीं करना चाहिए।

योगिनी एकादशी पूजा-विधि- सभी एकादशी की तरह योगिनी एकादशी व्रत के नियम भी एक दिन पहले यानी दशमी तिथि से ही शुरू हो जाते हैं। दशमी तिथि की रात्रि से ही आपको एकादशी व्रत का पालन करना होता है। एकादशी के एक दिन पहले रात को बिना नमक वाले सात्विक भोजन करना चाहिए। एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठ कर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें। इसके बाद घर के मंदिर में दीप जलाए और व्रत का संकल्प लें। पूजा की चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएं और उस पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या मूर्ति स्थापित करें। भगवान को पूजा में पीले फूल, पीले फल व मिष्ठान इत्यादि अर्पित करें। भगवान विष्णु को पीला रंग अत्यंत प्रिय होता है। ध्यान रहे कि पूजा में भगवान विष्णु को तुलसी का पत्ता जरूर चढ़ाए। क्योंकि तुलसी पत्ते के बिना भगवान विष्णु की कोई भी पूजा अधूरी मानी जाती है। पूजा के बाद भगवान विष्णु की आरती करें और हाथ जोड़कर उनका आशीर्वाद लें।

एकादशी व्रत के पुण्य के समान और कोई पुण्य नहीं है। जो पुण्य सूर्यग्रहण में दान से होता है, उससे कई गुना अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है।

जो पुण्य गौ-दान सुवर्ण-दान, अश्वमेघ यज्ञ से होता है, उससे अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है।

एकादशी करने वालों के पितर नीच योनि से मुक्त होते हैं और अपने परिवारवालों पर प्रसन्नता बरसाते हैं। इसलिए यह व्रत करने वालों के घर में सुख-शांति बनी रहती है।

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