महापुण्यकारी पर्व है गंगा दशहरा || Vaibhav Vyas


 महापुण्यकारी पर्व है गंगा दशहरा

पुराणों के अनुसार गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। इस दिन स्वर्ग से गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था, इसलिए यह महापुण्यकारी पर्व माना जाता है। गंगा दशहरा के दिन सभी गंगा मंदिरों में भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है। वहीं इस दिन मोक्षदायिनी गंगा का पूजन-अर्चना भी किया जाता है।

दान-पुण्य का महत्व- गंगा दशहरा के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है। इस दिन लोग पूजा-अर्चना करने के साथ ही दान-पुण्य करते हैं। कई लोग तो स्नान करने के लिए हरिद्वार जैसे पवित्र नदी में स्नान करने जाते हैं। स्नान के पश्चात दान-पुण्य और जरूरतमंदों को भोजन करने से पुण्य फलों की प्राप्ति होने वाली मानी गई है। इस दिन दान में सत्तू, मटका और हाथ का पंखा दान करने से दुगुना फल प्राप्त होता हैं।

गंगा दशहरा के दिन किसी भी नदी में स्नान करके दान और तर्पण करने से मनुष्य के जाने-अनजाने में किए गए कम से कम दस पापों से मुक्त होता है। इन दस पापों के हरण होने से ही इस तिथि का नाम गंगा दशहरा पड़ा है।

गंगा दशहरा व्रत- गंगा दशहरा का व्रत भगवान विष्णु को खुश करने के लिए किया जाता है। इस दिन व्रत करने वालों को भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इस दिन लोग व्रत करके पानी भी (जल का त्याग करके) छोड़कर इस व्रत को करते हैं। ग्यारस (एकादशी) की कथा सुनते हैं और अगले दिन लोग दान-पुण्य करते हैं। इस दिन जल का घट दान करके फिर जल पीकर अपना व्रत पूर्ण करते हैं। इस दिन दान में केला, नारियल, अनार, सुपारी, खरबूजा, आम, जल भरी सुराई, हाथ का पंखा आदि चीजें भक्त दान करते हैं।

इस दिन गंगा स्नान करते समय सबसे पहले अपने ईष्ट देव और सूर्य को प्रणाम करें। स्नान के बाद सबसे पहले सूर्य देव को जल चढ़ाएं। इस दिन गंगा में डुबकी लगाकर ऊँ नमो गंगायै विश्वरूपिण्यै नारायण्यै नमो नम: मंत्र का जाप करते हुए स्नान करें। इससे आपके पापों का प्रायश्चित हो जाता है। गंगा दशहरा के दिन दान का विशेष महत्व दिया गया है। इसलिए इस दिन दान की जाने वाली वस्तुओं की संख्या कम से कम 10 होनी चाहिए।

Comments