शनिदेव पर तेल चढ़ाने से होता पीड़ा का शमन || Vaibhav Vyas


 शनिदेव पर तेल चढ़ाने से होता पीड़ा का शमन

आनन्द रामायण में लिखा है कि जब भगवान राम की सेना ने सागर सेतु बांध लिया था, तब राक्षस उन्हें हानि न पंहुचा सकें, उसके लिये पवनसुत हनुमान को उसकी देखभाल की जिम्मेदारी सौंपी गई। जब हनुमान जी शाम के समय राम के ध्यान में मग्न थे, तभी सूर्य पुत्र शनि ने अपना काला कुरुप चेहरा बनाकर क्रोधपूर्ण कहा- हे वानर, मैं देवताओं में शक्तिशाली शनि हूं। सुना है तुम बहुत बलशाली हो। आंखें खोलो और मेरे साथ युद्ध करो।

इस पर हनुमान जी ने विनम्रता से कहा - इस समय मैं अपने प्रभु को याद कर रहा हूं। आप मेरी पूजा में विध्न मत डालिये। जब शनि देव लडऩे पर उतर ही आये तो हनुमान जी ने उन्हें अपनी पूंछ में लपेटना शुरू कर दिया। शनि देव उस बंधन से मुक्त न होकर पीड़ा से व्याकुल होने लगे। शनि के घमंड को तोडऩे के लिये हनुमान ने पत्थरों पर पूंछ को पटकना शुरू कर दिया जिससे शनिदेव लहुलुहान हो गये।

तब शनिदेव ने दया की प्रार्थना की जिस पर हनुमान जी ने कहा- मैं तुम्हें तभी छोडूग़ा जब तुम मुझे वचन दोगे कि श्री राम के भक्त को कभी परेशान नहीं करोगे। शनि ने गिड़गिड़ाकर कहा- मैं वचन देता हूं कि कभी भूलकर भी आपके और श्रीराम के भक्तों की राशि पर नहीं आऊंगा।

तब हनुमान जी ने शनि को छोड़ दिया और उसके घावों पर लगाने के लिये जो तेल दिया तो उससे शनिदेव की सारी पीड़ा मिट गई। उसी दिन से शनिदेव को तेल चढ़ाया जाता है जिससे उनकी पीड़ा शांत होती है और वे प्रसन्न हो जाते हैं।

शनिदेव की दृष्टि में क्रूरता- ब्रह्मपुराण में कहा गया है - बचपन से ही शनिदेव भगवान कृष्ण के परम भक्त थे। वयस्क होने पर उनके पिता ने चित्ररथ की कन्या से उनका विवाह कर दिया। एक रात उनकी पत्नी ऋतु स्नान करके पुत्र प्राप्ति की इच्छा से उनके पास पंहुची तो शनिदेव भगवान कृष्ण के ध्यान में मग्न थे। पत्नी प्रतीक्षा करके थक गई। उसका ऋतुकाल निष्फल हो गया। तब उसने क्रुद्ध होकर शनिदेव को श्राप दे दिया कि आज से जिसे तुम देख लोगे, वह नष्ट हो जायेगा। ध्यान टूटने पर शनिदेव ने अपनी पत्नी को मनाया लेकिन श्राप के प्रतिकार की शक्ति उसमें न थी। तभी से शनिदेव की दृष्टि को क्रूर माना जाने लगा और वे अपना सिर नीचा करके रहने लगे क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि उनकी दृष्टि के द्वारा किसी का अनावश्यक अनिष्ट हो।

शनि न्यायाधीश- मान्यताओं के अनुसार शनिदेव क्रूर ग्रह नहीं हैं, वे न्यायकर्ता हैं। व्यक्ति जब पाप करता है, वह लोभ, हवस, गुस्सा, मोह से प्रभावित होकर अन्याय, अत्याचार, दुराचार, अनाचार, पापाचार, व्याभिचार का सहारा लेता है तो शनिदेव उस व्यक्ति के जीवन में साढ़ेसाती लाकर उसके पापों का हिसाब स्वयं कर देते हैं। लेकिन यदि साढ़ेसाती के दौरान भी व्यक्ति सत्य को नहीं छोड़ते, दया और सुकर्म का सहारा लेते हैं, तब समय शुभता से व्यतीत करवा देते हैं। अत: शनिदेव अच्छे कर्मो के फलदाता हैं व बुरे कर्मों का दंड भी देते हैं जिस कारण से उन्हे न्यायधीश कहा जाता है।

दशरथ स्त्रोत से शनि देव होते प्रसन्न- शास्त्रों में यह आख्यान मिलता है कि शनि के प्रकोप से अपने राज्य को घोर दुर्भिक्ष से बचाने के लिये राजा दशरथ उनसे मुकाबला करने पंहुचे तो उनका पुरुषार्थ देखकर शनिदेव ने उनसे वरदान मांगने को कहा। राजा दशरथ ने विधिवत स्तुति कर स्वरचित स्त्रोत से उन्हें प्रसन्न किया तो शनिदेव ने उन्हें वरदान दिया कि चतुर्थ व अष्टम ढैया होने पर 'दशरथ स्त्रोतÓ पढ़कर मेरे द्वारा दिये जाने वाले कष्टों से रक्षा की जा सकती है।

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