अपरा एकादशी व्रत से प्रेत योनि से मुक्ति || Vaibhav Vyas


 अपरा एकादशी व्रत से प्रेत योनि से मुक्ति

अपरा एकादशी का व्रत ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत रखने से पाप, दुख, कष्ट तो दूर होते ही हैं, साथ ही मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। अपरा एकादशी व्रत करने से प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है। इस व्रत के कथा को सुनने मात्र से ही अनजाने में किए गए पाप नष्ट हो जाते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत के पुण्य को किसी प्रेतात्मा को दान कर देने से उसे प्रेत योनि से छुटकारा मिल जाता है, वह स्वर्ग में स्थान प्राप्त करता है।

अपरा एकादशी व्रत के लिए ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी तिथि का प्रारंभ 25 मई को सुबह 10 बजकर 32 मिनट से हो जाएगा और यह तिथि 26 मई को सुबह 10 बजकर 54 मिनट तक रहेगी। उदयातिथि की मान्यतानुसार, अपरा एकादशी व्रत 26 मई गुरुवार को है। इस बार अपरा एकादशी के दिन सुबह से रात 10.15 बजे तक आयुष्मान योग बना हुआ है, सर्वार्थ सिद्धि योग पूरे दिन है। ऐसे में आप अपरा एकादशी व्रत की पूजा इस दिन अपनी सुविधानुसार सुबह कभी कर सकते हैं। व्रत का पारण अगले दिन 27 मई को प्रात: 05.25 बजे से प्रात: 08.10 बजे के बीच कर लेना है।

एकादशी के दिन स्नान के बाद अपरा एकादशी व्रत एवं भगवान विष्णु की पूजा का संकल्प लें। उसके बाद पूजा स्थान पर एक चौकी पर भगवान विष्णु की स्थापना करें। उसके पश्चात शुभ मुहूर्त में भगवान विष्णु को गंगाजल से स्नान कराने के बाद पंचामृत से अभिषेक करें। फिर श्रीहरि को पीले वस्त्र, पीले फूल, फल, अक्षत्, चंदन, हल्दी, केसर, पंचामृत, तुलसी का पत्ता, गुड़, सुपारी, पान का पत्ता, केला, धूप, दीप, गंध आदि चढ़ाएं। इसके पश्चात विष्णु चालीसा, विष्णु सहस्रनाम, अपरा एकादशी व्रत कथा का पाठ करें। फिर पूजा का समापन भगवान विष्णु की आरती से करें। पूजा के बाद किसी ब्राह्मण को गेहूं, गुड़, हल्दी, पीले वस्त्र, फल आदि का दान करें. फिर पूरा दिन फलाहार पर व्यतीत करें, भक्ति भजन करें।

अपरा एकादशी व्रत कथा- प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक राजा था जो कि बहुत ही धर्मात्मा था। उसका छोटा भाई बहुत ही क्रूर और अधर्मी था। एक दिन उसने रात्रि में अपने बड़े भाई महीध्वज की हत्या कर दी। उसने महीध्वज के शव को जंगल में एक पीपल के नीचे गाड़ दिया। अकाल मृत्यु से राजा महीध्वज प्रेतात्मा के रूप में उसी पीपल पर रहने लगा। प्रेतात्मा ने वहां पर बहुत उत्पात मचाया। एक दिन धौम्य नामक ॠषि उस पीपल के नीचे से गुजर रहे थे। वहां उसने प्रेत को देखा। ऋषि ने अपने तपोबल के द्वारा प्रेत के उत्पात का कारण जान लिया। उन्होंने उस प्रेत को पीपल के वृक्ष से नीचे उतारा  और परलोक विद्या का उपदेश दिया। ऋषि ने उस राजा को प्रति योनी से मुक्ति दिलाने के लिए स्वयं ही अपरा एकादशी का व्रत रखा, जिसके पुण्य से राजा को प्रेत योनि से मुक्ति मिली। वह दयालु ऋषि को धन्यबाद देकर स्वर्ग चला गया।

मान्यताओं के अनुसार एकादशी व्रत के दिन कथा का श्रवण-वाचन मात्र से ही पापों से छुटकारा मिलने वाला माना गया है।

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