एकादशी व्रत की कथा का वाचन-श्रवण करने से मिलती पूर्णता || Vaibhav Vyas


 एकादशी व्रत की कथा का वाचन-श्रवण करने से मिलती पूर्णता

हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार एकादशी का बहुत अधिक महत्व है। एक महीने में दो एकादशी पडऩे की वजह से साल में 24 एकादशी होती है। अधि मास होने पर दो एकादशी बढ़ जाती है। इस बार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी 12 मई गुरुवार को पड़ रही है। गुरुवार का दिन भगवान विष्णु हरि की पूजा-अर्चना का दिन माना जाता है इसी वजह से एकादशी इसी दिन होने की वजह से भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व बढ़ जाता है। किसी भी व्रत में उससे संबंधित कथा का श्रवण-वाचन करना व्रत की पूर्णता देने वाला माना जाता है। इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार धारण किया था, इसलिए इसे मोहिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।

एकादशी वाले दिन भगवाण श्री विष्णु हरि की विधिवत पूजा-अर्चना करनी चाहिए। पूजा-अर्चना के पश्चात एकादशी की कथा का श्रवण-वाचन करना चाहिए। सभी व्रतों में इस व्रत का खास महत्व है। इस व्रत को करने से सभी पाप और दुखों से मुक्ति मिलती है। मान्यताओं के अनुसार इस व्रत के कथा का पाठ करने से एक हजार गायों के दान करने के बराबर पुण्य मिलता है।

एकादशी व्रत के दिन सुबह उठें और स्नानादि करके व्रत का संकल्प लें। स्नान के बाद पूजा स्थल पर बैठकर भगवान विष्णु की मूर्ति पूजा चौकी पर स्थापित करे और घी का दीपक जलाएं। भगवान विष्णु की आरती के बाद भोग लगाएं। मोहिनी एकादशी व्रत की कथा पढ़ें या सुनें। विष्णु भगवान के भोग में तुलसी जरूर चढ़ाएं। बिना तुलसी के विष्णु भगवान भोग स्वीकार नहीं करते हैं। बाद में फलाहारी व्रत रखें। अगले दिन पारण के लिए शुभ मुहूर्त में तुलसी दल खाकर व्रत का पारण करें। उसके बादृ ब्राह्मण को भोजन कराकर खुद भी भोजन करें।

मोहिनी एकादशी कथा- भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार के पीछे एक पौराणिक कथा है, कहा जाता है कि जब देवासुर संग्राम हुआ और देवताओं को स्वर्ग से भगाकर असुरों ने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया, तब भगवान विष्णु ने देवताओं को समुद्र मंथन की सलाह दी और देवराज इंद्र ने असुरों के राजा महाराज बलि से मिलकर समुद्र मंथन की योजना बनाई। क्षीरसागर में समुद्र मंथन किया गया। उस समुद्र मंथन में एक-एक करके 14 अनमोल रत्न उत्पन्न हुए। 14वें स्थान पर धन्वंतरी वैद्य अपने हाथ में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। अमृत कलश को देखते ही देवों और असुरों में पुन: संग्राम छिड़ गया। इस कारण भगवान विष्णु ने रूपवती मोहिनी का अवतार लिया।

देवों और दानवों को अलग अलग पंक्ति में बिठाकर अमृत पान कराने की बात कही। दोनों पक्षों में सहमति बनने पर भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार के मोहिनी का ऐसा जादू किया कि सारे असुर रुप और सौंदर्य को देखकर सम्मोहित हो गए। असुरों को सम्मोहित करके मोहिनी रूपी भगवान विष्णु ने देवताओं को अमृत पिलाकर अमर कर दिया। इसी दिन देवासुर संग्राम का अंत हुआ।

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