वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को वरुथिनी एकादशी व्रत रखा जाता है। वैशाख मास कृष्ण पक्ष एकादशी के इस व्रत को करने से शारीरिक कष्ट और रोगों से मुक्ति मिलती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार राजा मांधाता ने वरुथिनी एकादशी व्रत करके अपने अपंग शरीर को ठीक किया था और शारीरिक कष्टों से मुक्ति प्राप्त की थी। इस व्रत के पुण्य प्रभाव से ही राजा मांधाता को स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी। इस व्रत के महत्व के बारे में स्वयं भगवान विष्णु ने राजा मांधाता को बताया था। पंचांग के अनुसार, वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी 26 अप्रैल को 01.37 बजे लग रही है, जो 27 अप्रैल को 12.47 बजे तक मान्य रहेगी। ऐसे में उदयातिथि के आधार पर वरुथिनी एकादशी व्रत 26 अप्रैल को रखा जाएगा। इस दिन त्रिपुष्कर योग भी बन रहा है।
वरुथिनी एकादशी व्रत रखने वालों को श्री विष्णु हरि की पूजा-उपासना करनी चाहिए। वरुथिनी एकादशी के एक दिन प्रात:काल स्नान आदि से निवृत होकर साफ वस्त्र पहन लें। फिर हाथ में जल, अक्षत् और पीले फूल लेकर वरुथिनी एकादशी व्रत एवं पूजा का संकल्प करें। फिर प्रथम पूज्य गणेश और गौरी की पूजा करें। उसके बाद एक चौकी पर पीले रंग का कपड़ा बिछा दें, उस पर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर को स्थापित कर दें। उनको पंचामृत से स्नान कराएं। अब गंगाजल से स्नान कराके चंदन या रोली का तिलक लगाएं। अक्षत्, पीले फूल, धूप, दीप, गंध, पान, सुपारी, हल्दी आदि से पूजन करें। केला, फल, मिठाई, तुलसी का पत्ता, पंचामृत का भोग लगाएं। इसके बाद विष्णु चालीसा, विष्णु सहस्रनाम और वरुथिनी एकादशी व्रत कथा का पाठ करें। व्रत रखने वाले को हमेशा व्रत कथा का पाठ या श्रवण जरूर करना चाहिए, जिससे व्रत का पूर्ण फल मिलने वाला रहता है। इसके पश्चात भगवान विष्णु की आरती करें। घी के दीपक या कपूर से आरती करें। आरती के समय में घंटी और शंख बजाना चाहिए। आरती को पूरे घर में ले जाएं। अब आप पूजा में कमी या भूल के लिए क्षमा प्रार्थना कर लें और भगवान विष्णु के समक्ष अपनी मनोकामना व्यक्त कर दें। इसके पश्चात केला, फल, अन्न आदि का दान किसी ब्राह्मण को करें और दक्षिणा देकर विदा करें। व्रत रखने वालों को इस दिन फलाहार करते हुए व्रत करना चाहिए। नमक का सेवन न करें। रात्रि के प्रहर में भगवत जागरण करें। फिर अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण करके व्रत को पूरा करें।
एकादशी व्रत रखने वालों को तामसिक भोजन और विचारों से दूर रहना चाहिए। व्रती को इस दिन पीले वस्त्र पहनना चाहिए। उसके बाद व्रत एवं पूजा का संकल्प करना चाहिए। पूजा के समय वरुथिनी एकादशी व्रत कथा का श्रवण या पाठ करें, इससे व्रत का महत्व पता चलता है। इस दिन भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप तुलसी की माला से करना चाहिए। इससे मनोकामनाओं की सिद्धि होने वाली होती है। वरुथिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को केसर भात, केला या फिर खीर का भोग लगाना चाहिए। एकादशी पूजा का समापन भगवान विष्णु की आरती ओम जय जगदीश हरे से करें। घी के दीपक या कपूर से आरती कर सकते हैं। आरती करने से नकारात्मकता दूर होती है।
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