राम नाम सुमिरन से भवसागर से बेड़ा पार || Vaibhav Vyas


 राम नाम सुमिरन से भवसागर से बेड़ा पार

प्रभु श्री राम का आशीर्वाद पाना बड़ा ही सहज और सरल है। कहा गया है राम नाम सुमिरन करते रहने से ही मनुष्य भव सागर से पार पा सकता है। ऐसे ही श्री रामचरित मानस की यह चौपाई इस बात को चिन्हित करती है कि राम नाम के सुमिरन में कितनी ताकत है।

जासु नाम सुमिरत एक बारा।

उतरहिं नर भवसिंधु अपारा॥

सोइ कृपालु केवटहि निहोरा।

जेहिं जगु किय तिहु पगहु ते थोरा॥

अर्थात् एक बार जिनका नाम स्मरण करते ही मनुष्य अपार भवसागर के पार उतर जाते हैं और जिन्होंने (वामनावतार में) जगत् को तीन पग से भी छोटा कर दिया था (दो ही पग में त्रिलोकी को नाप लिया था), वही कृपालु श्री रामचन्द्रजी (गंगाजी से पार उतारने के लिए) केवट का निहोरा कर रहे हैं।

ऐसे ही श्री राम के राम रक्षा स्तोत्र के पाठ में इतनी शक्ति है कि इस पाठ को प्रतिदिन करने वाले व्यक्ति के श्री राम रक्षा स्तोत्र सुनने तथा पाठ करने मात्र से घर-परिवार की बुरी नजर से रक्षा होती है व सुख संपत्ति का वास होता है। श्री राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने वाले हर तरह की परेशानियों से सुरक्षित रहते हैं। जीवन में आने वाले कष्टों से राहत मिलती है। भगवान श्री राम का आशीर्वाद मिलने से व्यक्ति को दीर्घायु की प्राप्ति होती है। ऐसी मान्यता है कि इस स्तोत्र के प्रभाव से मंगल का कुप्रभाव कम होता है। श्री राम रक्षा स्तोत्र से प्रभु श्रीराम के साथ हनुमान जी की भी कृपा बनी रहती है।

राम रक्षा स्तोत्र पाठ शुरू करने से पहले इस मंत्र से करें शुरुआत-

अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य।

बुधकौशिक ऋषि:।

श्रीसीतारामचंद्रोदेवता।

अनुष्टुप छन्द:। सीता शक्ति:।

श्रीमद् हनुमान् कीलकम्।

श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग:।।

अर्थ- इस राम रक्षा स्तोत्र मंत्र के रचयिता बुध कौशिक ऋषि हैं, सीता और रामचंद्र देवता हैं, अनुष्टुप छंद हैं, सीता शक्ति हैं, हनुमान जी कीलक है तथा श्री रामचंद्र जी की प्रसन्नता के लिए राम रक्षा स्तोत्र के जप में विनियोग किया जाता हैं।

॥ अथ ध्यानम् ॥

ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्दद्पद्?मासनस्थं।

पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्॥

वामाङ्कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं।

नानालङ्कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम्॥

ध्यान धरिए - जो धनुष-बाण धारण किए हुए हैं, बद्द पद्मासन की मुद्रा में विराजमान हैं और पीतांबर पहने हुए हैं, जिनके आलोकिक नेत्र नए कमल दल के समान स्पर्धा करते हैं, जो बाएँ ओर स्थित सीताजी के मुख कमल से मिले हुए हैं- उन आजानु बाहु, मेघश्याम, विभिन्न अलंकारों से विभूषित तथा जटाधारी श्रीराम का ध्यान करें। इसके पश्चात राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करना चाहिए।

रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन्।

नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति॥

Comments