वैशाख मास में संकल्पपूर्वक करें व्रत-नियमों का पालन || Vaibhav Vyas


 वैशाख मास में संकल्पपूर्वक करें व्रत-नियमों का पालन

तैलाभ्यघ्गं दिवास्वापं तथा वै कांस्यभोजनम्म्।

खट्वानिद्रां गृहे स्नानं निषिस्य च भक्षणम्।।

वैशाखे वर्जयेदष्टौ द्विभुक्तं नक्तभोजनम्।।


वैशाख मास में व्रत-नियमों का पालन कर जो जातक श्री विष्णु हरि की पूजा-उपासना करता है उसके सभी संकट दूर होकर उसे मनोवांछित फलों की प्राप्ति होने वाली मानी गई है। इसीलिए इस माह में संकल्प करके कार्य करना श्रेष्ठ माना गया है चाहे वह केवल स्नान हो या पूरे माह अन्य किसी तरह के व्रत-नियम हों। व्रत नियमों के पालन के संकल्प के उपरांत भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। स्कंद पुराण के अनुसार वैशाख मास के देवता भगवान मधुसूदन हैं। वैशाखमास में मधुसुदन जी से इस प्रकार की स्तुति करनी चाहिए-

मधुसूदन देवेश वैशाखे मेषगे रवौ।

प्रात:स्नानं करिष्यामि निर्विघ्नं कुरु माधव।।

हे मधुसूदन! हे देवेश्वर माधव! मैं सूर्य के मेष राशि में स्थित होने पर वैशाख मास में प्रात: स्नान करूंगा, आप इसे निर्विघ्न पूर्ण कीजिए।

इसके बाद निम्न मंत्र से सूर्य को अघ्र्र्य देना चाहिए-

वैशाखे मेषगे भानौ प्रात: स्नानपरायण:।

अघ्र्यं तेऽहं प्रदास्यामि गृहाण मधुसूदन।।

वैशाख मास में मनुष्य संकल्पादि कार्य में यदि पुष्परेणु तक का परित्याग करके गोदान करता है, तो उसे अपार सुख की प्राप्ति होती है। इस पूरे वैशाखमास में व्रत रखकर गोदान करने वाला इस भीमव्रत के प्रभाव से श्री हरिस्वरूप हो जाता है। यह मास अति उत्तम व पवित्र है। इस मास में नियमों का पालन करने वाला व्यक्ति इस लोक के सुखों को भोग करता हुआ धर्म, अर्थ, काम-मोक्ष चारों पुरुषार्थों को भी प्राप्त कर लेता है। अत: सभी को वैशाख मास के सदाचार, नियमों और धर्मों का पालन करना चाहिए।

भगवान विष्णु को शीघ्र प्रसन्न करने वाला इसके समान दूसरा कोई मास नहीं है, जो वैशाखमास में सूर्योदय से पहले स्नान करता है, उससे भगवान विष्णु सदा प्रेम करते हैं। पाप तभी तक कष्ट देतें हैं, जब तक मनुष्य वैशाख मास में प्रात:काल जल में स्नान नहीं करता। वैशाख माह में सब तीर्थ, देवता आदि बाहर के जल अर्थार्त सामान्य नदी तालाबों में भी सदैव स्थित रहते हैं। विष्णुजी की आज्ञा से मानव का कल्याण करने के लिए वे सूर्योदय से लेकर छह दंड के भीतर सभी देव उपस्थित रहते हैं। वैशाख सर्वश्रेष्ठ मास है और विष्णुजी को सदा प्रिय है। जो पुण्य फल कई प्रकार के दान से होता है और जो फल सब तीर्थों स्थलों के दर्शन से मिलता है ये सभी पुण्यफल की प्राप्ति वैशाखमास में मात्र जल का दान करने से प्राप्त हो जाती है। जो जलदान में असमर्थ है, ऐसे ऐश्वर्य की अभिलाषा रखने वाले पुरुष को उचित है कि वह दूसरे को प्रबोध करे इस मास में जल का दान करने से बढ़कर कोई हितकारी कार्य नही है।

जो भी जातक वैशाख मास में मार्ग पर यात्रियों के लिए प्याऊ लगाता है, वह विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है। प्रपादान अर्थात पौसला या प्याऊ के द्वारा जल दान करता है वह देवताओं, पितरों तथा ऋषियों को अत्यंत प्रिय होता है। जो भी जातक इस वैशाख मास में प्याऊ लगाकर राहगीरों की प्यास बुझाता है, उस पर ब्रह्मा, विष्णु, शिव आदि देवतागण प्रसन्न होते हैं।

वैशाख मास में जल की इच्छा रखने वाले को जल, गरीबों या राहगीरों को छाता और पंखे की इच्छा रखने वाले को पंखा देना। और जो पीडि़त महात्माओं को प्रेम से शीतल जल प्रदान करता है, उसे उतनी ही मात्र से दस हजार राजसूय यज्ञों का फल प्राप्त होता है।

वैशाख मास में धूप और परिश्रम से पीडि़त ब्राह्मण या संत को जो पंखा डुलाकर शीतलता प्रदान करता है, वह निष्पाप होकर भगवान का पार्षद हो जाता है। जो मार्ग में थके हुए श्रेष्ठ द्विज को हवा, पानी और शारीरिक सेवा देता है, वह भगवान विष्णु का सायुज्य प्राप्त कर लेता है।

जो शुद्ध मन से हाथ वाला पंखा दान करता है उसके पापों का शमन हो जाता है। जो भी इस विष्णुप्रिय वैशाखमास में पादुका दान करता है, वह विष्णुलोक को जाता है। जो मार्ग में राहगीरों के ठहरने के लिए विश्रामशाला इस मास में बनवाता है उसे अनेक तीर्थों के बराबर फल प्राप्त करता है।

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