गुरु प्रदोष व्रत से शत्रुओं पर मिलती विजय || Vaibhav Vyas

 गुरु प्रदोष व्रत से शत्रुओं पर मिलती विजय

हिन्दू पंचांग के नववर्ष के प्रथम माह चैत्र माह के शुक्ल पक्ष का प्रदोष व्रत इस बार गुरुवार के दिन है इसलिए यह गुरु प्रदोष व्रत है। हर माह की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। इस बार गुरुवार के दिन गुरु प्रदोष कहलाने वाले इस व्रत से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। इसके साथ ही आरोग्य, सुख, धन, संपत्ति आदि की प्राप्ति होती है। भगवान शिव शंकर के आशीर्वाद से रोग दूर होते हैं और ग्रह दोष भी शांत हो जाते हैं। प्रदोष का व्रत करने वालों को इस दिन शुभ मुहूर्त में भगवान भोलेनाथ की पूजा-उपासना करनी चाहिए, जिससे फलों में शीघ्रता मिलने वाली रहती है। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 14 अप्रैल गुरुवार को प्रात: 04 बजकर 49 मिनट पर शुरु हो रही है। यह तिथि अगले दिन 15 अप्रैल शुक्रवार को प्रात: 03 बजकर 55 मिनट तक मान्य है। ऐसे में प्रदोष व्रत 14 अप्रैल को ही मान्य रहेगा। 14 अप्रैल को प्रदोष व्रत रखने वालों को शिव जी की पूजा के लिए दो घंटे से अधिक का शुभ समय प्राप्त होगा. इस दिन प्रदोष पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 06 बजकर 46 मिनट से रात 09 बजे तक है।

इस बार गुरु प्रदोष को बनने वाले विशेष योग भी इस व्रत की महत्ता को बढ़ाने वाले कहे जा सकते हैं। गुरु प्रदोष व्रत के दिन वृद्धि योग सुबह 09 बजकर 52 मिनट तक है, उसके बाद से ध्रुव योग लग जाएगा। पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र भी सुबह 09 बजकर 56 मिनट तक है, फिर उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र शुरु होगा। ये योग और नक्षत्र मांगलिक कार्यों के लिए शुभ होते हैं। चैत्र शुक्ल प्रदोष के दिन का शुभ समय 11 बजकर 56 मिनट से दोपहर 12 बजकर 47 मिनट तक है। इस समय में आप कोई शुभ कार्य या किसी नए कार्य का प्रारंभ करना चाहते हैं, तो कर सकते हैं।

प्रदोष व्रत के दिन शाम के समय में भगवान शिव की पूजा करने का विधान है। किसी शिव मंदिर या फिर घर पर भी पूजा की जा सकती है। इस दिन शिव स्त्रोत या फिर शिव चालीसा का श्रवण-वाचन करना श्रेयष्कर रहता है साथ ही साथ इस दिन व्रत करने वालो को व्रत से संबंधित कथा का श्रवण-वाचन अवश्य करना चाहिए, जिससे व्रत का पूर्ण लाभ प्राप्त होने वाला रहे।

सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें। स्नान करने के बाद साफ- स्वच्छ वस्त्र पहन लें। घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें। अगर संभव है तो व्रत करें। भगवान भोलेनाथ का गंगा जल से अभिषेक करें। इस दिन भोलेनाथ के साथ ही माता पार्वती और भगवान गणेश की पूजा भी करें। किसी भी शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। भगवान शिव को बेलपत्र, भांग, धतूरा, फूल, फल, चंदन, अक्षत्, धूप, दीप, गंध, गंगाजल, गाय का दूध आदि अर्पित कर विधि विधान से पूजा करें। इस दौरान ओम नम: शिवाय मंत्र का जाप करें। भगवान शिव की आरती करें। इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें। पूजा के बाद देवों के देव महादेव से अपनी मनोकामना व्यक्त करें और पूजा में हुई भूल आदि के लिए क्षमा प्रार्थना कर लें। शिव जी की कृपा से आपको कार्यों में सफलता मिलेगी।

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