नौवें दिन सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा से मिलती विजय || Vaibhav Vyas


 नौवें दिन सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा से मिलती विजय

नवरात्रि के नौवें दिन माता के सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा-अर्चना का विधान है। जैसा कि माता के नाम के साथ ही सिद्धि शब्द जुड़ा है जिससे इसका महत्व सहज ही समझा जा सकता है। यानि माता का यह स्वरूप सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाला माना जाता है। सिद्धिदात्री स्वरूप की शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिए असंभव नहीं रह जाता है। ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामथ्र्य उसमें आ जाती है।

देवी सिद्धिदात्री का वाहन सिंह है। वह कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं। विधि-विधान से नौंवे दिन इस देवी की पूजा-उपासना करने से लौकिक और परलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति संभव हो सकती है।

सिद्धिदात्री देवी उन सभी भक्तों को महाविद्याओं की अष्ट सिद्धियां प्रदान करती हैं, जो सच्चे मन से उनके लिए पूजा करते हैं। इस दिन बैंगनी या जामुनी रंग पहनें। यह रंग अध्यात्म का प्रतीक होता है। नवरात्रि के नौवें दिन माता सिद्धिदात्री के साथ ही साथ गणेश और अन्य देवताओं की भी पूजा की जाती है। इस तिथि को विशेष हवन किया जाता है। सर्वप्रथम माता जी की चौकी पर सिद्धिदात्री माँ की तस्वीर या मूर्ति रख इनकी आरती और हवन किया जाता है। हवन करते वक्त सभी देवी दवताओं के नाम से हवि यानी अहुति देनी चाहिए। बाद में माता के नाम से अहुति देनी चाहिए। दुर्गा सप्तशती के सभी श्लोक मंत्र रूप हैं अत: सप्तशती के सभी श्लोक के साथ आहुति दी जा सकती है। देवी के बीज मंत्र ऊँ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमो नम: से कम से कम 108 बार हवि दें। भगवान शंकर और ब्रह्मा जी की पूजा पश्चात अंत में इनके नाम से हवि देकर आरती करनी चाहिए।

नौवें दिन सिद्धिदात्री को मौसमी फल, हलवा, पूड़ी, काले चने और नारियल का भोग लगाया जाता है। जो भक्त नवरात्रों का व्रत कर नवमीं पूजन के साथ समापन करते हैं, उन्हें इस संसार में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। हवन में जो भी प्रसाद चढ़ाया है जाता है उसे समस्त लोगों में बांटना चाहिए। मां की पूजा के बाद कुंवारी कन्याओं को भोजन कराया जाता है। उन्हें मां के प्रसाद के साथ दक्षिणा दी जाती है और चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया जाता है। आठ दिन व्रत, नवमीं पूजा और कन्याओं को भोजन कराने से मां की विशेष कृपा प्राप्त होने वाली रहती है।

कंचनाभा शंखचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो।

स्मेरमुखी शिवपत्नी सिद्धिदात्री नमो:स्तुते॥

इस दिन मां की कृपा पाने के लिए सच्चे मन और भक्ति भाव से सिद्धिदात्री के बीज मंत्र से जाप किया जाए तो वह शीघ्र फलदायी होता है और उसको जीवन की समस्याओं से छुटकारा मिलने लगता है। मां सिद्धिदात्री का बीज मंत्र-

ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:।

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