श्री विष्णु के अनन्य भक्त प्रहलाद || Vaibhav Vyas


 श्री विष्णु के अनन्य भक्त प्रहलाद

हिन्दू संस्कृति में होली का त्यौहार उल्लास और उमंग के प्रतीक के रूप में मनाया जाने वाला त्यौहार है। पहले दिन होलिका दहन होता है फिर अगले दिन रंगों की होली का त्यौहार मनाया जाता है। होलिका दहन के दिन होलिका जलाई जाती है। होलिका में गेहूं की बालें और प्रसाद भी अर्पित किया जाता है। होलिका दहन के अगले दिन, होली का त्योहार मनाए जाने का विधान है।

होलिका दहन का अपना एक धार्मिक महत्व भी होता है। यूं  तो इस दिन को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित है, लेकिन उनमें से सबसे प्रचलित एक कथा के अनुसार, पौराणिक काल में असुरराज हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रहलाद भगवान श्री विष्णु का अनन्य भक्त था। हिरण्यकशिपु काफी घमंडी था। वो चाहता था कि पूरी दुनिया उसका सम्मान करे बात मानें और हर कोई उसकी पूजा करे। हिरण्यकशिपु भगवान विष्णु से बहुत नफरत करता था। उसके घमंड का कारण यह था कि एक बार प्रह्लाद के पिता दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने तपस्या कर देवताओं से यह वरदान प्राप्त कर लिया कि वह न तो पृथ्वी पर मरेगा न आकाश में, न दिन में मरेगा न रात में, न घर में मरेगा न बाहर, न अस्त्र से मरेगा न शस्त्र से, न मानव से मारेगा न पशु से। इस वरदान को प्राप्त करने के बाद वह स्वयं को अमर समझ कर नास्तिक और निरंकुश हो गया।

भगवान विष्णु के प्रति प्रह्लाद की भक्ति के कारण हिरण्यकशिपु उससे काफी नाराज रहता था। हिरण्यकशिपु के लाख प्रयासों के बावजूद भी वे अपने पुत्र प्रहलाद को, ईश्वरीय भक्ति से विमुख न कर सका। हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को काफी समझाया कि वो भगवान विष्णु की भक्ति न करे, लेकिन जब भक्त प्रह्लाद पर उसकी एक न चली तो उसने अपने बेटे को मरवाने के लिए कई प्रयास किए। कभी हाथी के पैर के नीचे कुचलवाने की कोशिश की, तो कभी छत से फिंकवा दिया। लेकिन जब भी हिरण्यकशिपु ने भक्त प्रह्लाद पर अत्याचार किए भगवान विष्णु ने हर बार उसे बचाया और उसकी प्राण रक्षा की। जिसके बाद हिरण्यकशिपु ने प्रहलाद को मारने की योजना बनाई। इसके लिए हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन की मदद ली, जिसका नाम होलिका था। होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वो, अग्नि में जल नहीं सकती। इसी कारण होलिका अपने भाई हिरण्यकश्यप के कहने पर, प्रहलाद को लेकर एक अग्निकुंड में बैठ गई। लेकिन ईश्वरीय कृपा से प्रहलाद बच गया और होलिका उसी अग्नि में जलकर भस्म हो गई।

माना जाता है कि इस तरह से हर वर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा को, होलिका दहन का विधान शुरु हुआ। इसलिए इस पावन त्योहार का नाम भी होली पड़ा। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। कई कथाओं में ये भी माना गया है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन पूतना नामक राक्षसी का वध किया था, जिसके उत्साह में गोपियों संग श्री कृष्ण ने होली खेली थी।

Comments