शीतला सप्तमी पर्व पर करें ठंडे भोजन का सेवन || Vaibhav Vyas


 शीतला सप्तमी पर्व पर करें ठंडे भोजन का सेवन

सनातन धर्म में प्राचीन काल से ही दैहिक, दैविक एवं भौतिक कष्टों के निवारण के लिए देवी-देवताओं की अलग-अलग रूपों में पूजा करने का विधान अनेक धर्मशास्त्रों में बताया गया है। अर्थात देवी-देवता हर प्रकार के कष्टों से सदैव हमारी रक्षा करते हैं। ऐसा ही एक रूप है मां पार्वती स्वरूपा मां शीतला देवी का जिनकी उपासना अनेक संक्रामक रोगों से हमें रोग मुक्त करती है। मां शीतला देवी की पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को की जाती है। इस वर्ष यह पर्व 25 मार्च को मनाया जाएगा। प्रकृति के अनुसार शरीर निरोगी हो, इसलिए भी शीतला अष्टमी की पूजा-व्रत करना चाहिए।

हर धर्म में जो भी तीज त्यौहार और पर्व है उनका आध्यात्मिक महत्व तो होता है ही साथ ही उनका वैज्ञानिक महत्व भी रहता है और वह हमारे मनीषियों का शोधकार्य का दस्तावेज होता है। ऐसे ही एक पर्व होली के सातवें दिन एक त्यौहार के रूप में मनाया जाने वाला पर्व है जिसे शीतला सप्तमी कहते हैं। इस दिन ठंडा भोजन खाया जाता है और इस दिन कोई भी गर्म वस्तु चाय धूम्रपान तक वर्जित रहता है। महिलाएं शीतला सप्तमी से पहले रात में भोजन बना कर रख लेती है और अगले दिन शाम तक इसी भोजन को परोसती है।

1968 में अमेरिकन रिपोर्टर में एक रिसर्च पेपर का उद्धरण था की जर्मनी में एक शोध संस्थान में शीतला सप्तमी के भोजन का एब्सट्रैक्ट निकाला गया तो स्माल पाक्स का वैक्सीन तैयार हो गया था। तमाम वैज्ञानिक आश्चर्यचकित थे भारतीय भोजन की उत्कृष्ट उपयोगिता के लिए। बाद में 2002 में जब शीतलासप्तमी के भोजन के एक-एक व्यंजन पर काम किया तो चार चीजें पकड़ में आई- चावल, गुड़, दही और रात भर भीगी हुई चने की दाल। शीतला सप्तमी के भोजन में मुख्यत: ये चीजें बनाई जाती हैं- पूरी, सब्जी, दाल, चावल, गुलगुले, भजिए, गुड़ या गन्ने के रस में पकाया हुआ चावल, दही और चने की भीगी हुई दाल जिसे पकाया नहीं जाता कच्ची खाई जाती है।

भगवती शीतला की पूजा-अर्चना का विधान भी अनोखा होता है। शीतलाष्टमी के एक दिन पूर्व उन्हें भोग लगाने के लिए विभिन्न प्रकार के पकवान तैयार किए जाते हैं। अष्टमी के दिन बासी पकवान ही देवी को नैवेद्ध के रूप में समर्पित किए जाते हैं। लोकमान्यता के अनुसार आज भी अष्टमी के दिन कई घरों में चूल्हा नहीं जलाया जाता है और सभी भक्त ख़ुशी-ख़ुशी प्रसाद के रूप में बासी भोजन का ही आनंद लेते हैं। इसके पीछे तर्क यह है कि इस समय से ही बसंत की विदाई होती है और ग्रीष्म का आगमन होता है, इसलिए अब यहाँ से आगे हमें बासी भोजन से परहेज करना चाहिए।

ऐसा माना जाता है कि यदि होली के बाद सप्तमी तिथि को गुड़ में पका चावल एक कटोरी, दही एक कटोरी  तथा एक कटोरी चने की भीगी दाल (तीनों को मिलाकर लगभग 250 ग्राम) इन तीनों को मिला कर खा लिया जाए और 24 घंटे तक आपके पेट में कोई भी गर्म पेय अथवा  खाद्य पदार्थ न जाने पाए तो ऐसे विशिष्ट बैक्टीरिया का उत्पादन हो जाता है जो एंटीबाडीज का काम करते हैं और पूरे साल भर आप सभी तरह के हानिकारक वायरस से सुरक्षित हो जाते हैं तथा किसी भी प्रकार का चर्मरोग, लीवर किडनी इन्फेक्शन नहीं होता। मान्यता के अनुसार वायरस से बचने का एक विकल्प शीतला सप्तमी भी हो सकता है। इसलिए एक दिन ठंडा भोजन किया जा सकता है कोई अनर्थ नहीं होता बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो माता की कृपा मिलने वाली रहती है।

शीतला सप्तमी के दिन महिलाएं सबसे पहले ठंडे भोजन का प्रसाद माता को चढ़ाती हैं उसके बाद ही उसके सेवन की मान्यता है। वर्षों से चली आ रही इस रीति-रिवाज परम्परा को आज भी कई स्थानों पर अच्छे से निभाया जाता है और मान्यता अनुसार इससे स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं दूर होकर स्वास्थ्य लाभ मिलने वाला रहता है।

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