होलिका दहन पर करें विधि-विधान से पूजा || Vaibhav Vyas


 होलिका दहन पर करें विधि-विधान से पूजा

होली पर्व बड़े उत्साह के साथ मनाया जाने वाला महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है। सभी जगह यह दो दिवसीय उत्सव छोटी होली या होलिका दहन से शुरू होता है और उसके बाद रंगवाली होली होती है। होली के त्योहार पर लोग एक दूसरे के गले मिलकर सारे गिले शिकवे भूल जाते हैं और जमकर रंगों की होली का जश्न मनाते हैं। इस साल होलिका दहन 17 मार्च को किया जाएगा। रंगवाली होली होलिका दहन के अगले दिन यानी 18 मार्च को मनाई जाएगी।

बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है होली का त्योहार- हिंदू धर्म के मुताबिक होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। होलिका दहन दो दिवसीय होली पर्व का पहला त्योहार होता है और इस दिन लोग शुभ अलाव जलाते हैं, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह सभी बुराईयों का नाश करता है। इस बार होली का शुभ मुहूर्त 1 घंटा 10 मिनट का होगा जो 17 मार्च को 9 बजकर 20 मिनट पर शुरू होगा और 10 बजकर 31 मिनट तक रहेगा।

होलिका दहन की पूजा विधि- होलिका दहन की पूजा के लिए सर्वप्रथम स्नान करना बेहद जरूरी है। स्नान के बाद होलिका की पूजा वाले स्थान पर उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बैठ जाएं। इसके बाद पूजा के लिए गाय के गोबर से होलिका और प्रहलाद की प्रतिमा बनाए। होलिका पूजन में रोली, धूप, फूल, गुड़, हल्दी, बताशे, गुलाल और नारियल जैसी चीजें अर्पित की जाती हैं। उंबी, गोबर से बने बड़कुले, नारियल भी अर्पित कर विधिपूर्वक पूजन करें। मिठाइयां और फल भी अर्पित करें। भगवान नृसिंह का भी विधि-विधान से पूजन करें। इसके बाद होलिका के चार और सात बार परिक्रमा करें।

होलिका दहन की पौराणिक कथा- होलिका दहन की पूजन विधि के बाद कथा भी सुननी चाहिए। होलिका दहन की पौराणिक कथा मुख्य रूप से भगवान विष्णु के नृसिंह अवतार और भक्त प्रहलाद से जुड़ी हुई है। कथा के अनुसार विष्णु भगवान के एक भक्त प्रहलाद का जन्म असुर परिवार में हुआ। हिरण्यकश्यप को भगवान के प्रति प्रहलाद की भक्ति बिल्कुल पसंद नहीं थी। वहीं, प्रहलाद किसी दूसरी चीज की चिंता किए बिना भक्ति में लीन रहता था। प्रहलाद का ये स्वभाव हिरण्यकश्यप को पसंद न होने के कारण उसने प्रहलाद को कई यातनाएं दीं। कई बार प्रहलाद को मारने की कोशिश की, परन्तु भगवान विष्णु के प्रभाव के कारण वो हमेशा असफलता का ही सामान करना पड़ा। फिर हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मारने की बात अपनी बहन होलिका से कही। होलिका को वरदान मिला हुआ था कि वह आग में नहीं जलेगी इसलिए हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को होलिका की गोद में बैठा कर अग्नि में बैठा दिया। परिणाम स्वरूप भक्त प्रहलाद भगवान की कृपा से सकुशल रहे और होलिका अग्नि में स्वाहा हो गई।

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