भौम प्रदोष व्रत से मिलता आर्थिक संबल || Vaibhav Vyas


 भौम प्रदोष व्रत से मिलता आर्थिक संबल

त्रयोदशी तिथि भगवान भोलेनाथ को समर्पित है। हिंदू पंचांग के अनुसार हर माह की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है। प्रदोष व्रत का हिंदू धर्म में बहुत ही ज्यादा महत्व है। शीघ्र ही प्रसन्न होकर अपनी कृपा बरसाने वाले शिव शंकर की पूजा के लिए प्रदोष तिथि अत्यंत ही शुभ मानी गई है। इस दिन शिवजी के भक्त विधि-विधान से व्रत रखते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं। पौराणिक मान्यता है कि विधि-विधान से प्रदोष व्रत करने वाले जातक से प्रसन्न होकर महादेव उस पर अपनी पूरी कृपा बरसाते हैं। त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष काल में माता पार्वती और भगवान भोलेशंकर की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, प्रदोष काल में की गई भगवान शिव की पूजा कई गुना ज्यादा फलदायी होती है।

हर महीने में दो प्रदोष व्रत पड़ते हैं। हिंदी पंचांग के अनुसार, चैत्र माह का पहला प्रदोष व्रत 29 मार्च को है। ये मार्च महीने का आखिरी और चैत्र माह का पहला प्रदोष व्रत होगा। इस बार त्रयोदशी मंगलवार के दिन पडऩे की वजह से ये प्रदोष व्रत भौम प्रदोष व्रत कहलाएगा। मान्यता है कि भौम प्रदोष व्रत को विधि-विधान से करने पर व्यक्ति के जीवन से जुड़े सभी कर्ज दूर होते हैं और शिव की कृपा से उसकी आर्थिक स्थिति मजबूत होती है। यानी अलग-अलग वार को पडऩे की वजह से प्रदोष व्रत का नामकरण भी अलग-अलग किया जाता है।

प्रदोष व्रत वाले दिन प्रात: काल सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि करें और उसके बाद पावन प्रदोष व्रत का संकल्प लें। इसके बाद शिवजी की पूजा करें। वहीं दिन में भगवान शिव का मनन एवं कीर्तन करते हुए शाम के समय एक बार फिर स्नान करें और सूर्यास्त के समय प्रदोषकाल में भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा करें। प्रदोष व्रत वाले दिन कुश के आसन पर उत्तर-पूर्व की दिशा में मुंह करके भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। कहा जाता है कि प्रदोष व्रत वाले दिन भगवान शंकर की पूजा में ऊं नम: शिवाय मंत्र का माला जप करने पर विशेष फल मिलता है। इसलिए प्रदोष व्रत वाले दिन जलाभिषेक के साथ ही ऊं नम: शिवाय का जाप भी करते रहना चाहिए। साथ ही भगवान शिव को बेल पत्र, गंगाजल, अक्षत और धूप-दीप आदि अर्पित करें।

भगवान भोलेनाथ की पूजा विधि जितनी सरल है उतनी ही सहजता और सरलता के साथ भोलेनाथ भक्तों पर शीघ्र प्रसन्न होने वाले रहते हैं। इसी वजह से इनकी पूजा-उपासना में अधिक आडम्बर की आवश्यकता नहीं है, केवल सच्चे मन से केवल जाप करते रहने या फिर किसी भी शिव स्त्रोत का जाप करते रहने से भी शिवजी की कृपा के हकदार बनने वाले होते हैं। ऐसे ही शिवजी की शिव मानस पूजा का स्त्रोत है, जिसमें भाव की महत्ता अधिक रहती है, उसी भाव से भक्त अपने आराध्य की मन ही मन पूजा उपासना करते हुए उन्हें सब कुछ समर्पित करते हैं और भोलेनाथ उन्हें स्वीकार कर उनकी हर पीड़ा-कष्ट को मिटाने वाले होते हैं।

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