प्रेम का प्रतीक भाई दूज त्यौहार || Vaibhav Vyas


 प्रेम का प्रतीक भाई दूज त्यौहार

धुलंडी पर्व का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। इसके मुताबिक फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा के अगले दिन यानी कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि पर धुलंडी पर्व मनाया जाता है। इसके पीछे दो कथाओं का वर्णन है। जिसमें से पहला इसी दिन ही भोलेनाथ ने कामदेव को उनकी तपस्या भंग करने के प्रयास में भस्म कर दिया था। लेकिन देवी रति की प्रार्थना पर उन्होंने कामदेव को क्षमा दान देकर पुनर्जन्म दिया। साथ ही रति को यह वरदान दिया कि वह श्रीकृष्ण के पुत्र रूप में जन्म लेंगी। कामदेव के पुनर्जन्म और देवी रति को प्राप्त वरदान की खुशी में संपूर्ण विश्व में फूलों की वर्षा हुई। हर तरफ गुलाल उड़ाकर आंनदोत्सव मनाया गया। कहा जाता है कि यह तिथि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा थी। तब से ही इसे पर्व रूप में मनाया जाने लगा।

धुलंडी को लेकर एक और पौराणिक कथा के अनुसार असुर राजा हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को यह आदेश दिया कि वह उनके बेटे प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठें। क्योंकि होलिका को एक ऐसा दुशाला प्राप्त था, जिसे ओढऩे से अग्नि उसे छू भी नहीं सकती थी। यानी कि प्रह्लाद का जीवन संकट में था। इस आदेश के बाद संपूर्ण लोक में हर तरफ श्रीहरि के भक्त प्रह्लाद के जीवन को लेकर सभी दु:खी थे। तभी ईश्वर की ऐसी कृपा हुई कि दुशाला उड़कर प्रह्लाद के ऊपर आ गया और वह बच गए। हालांकि होलिका पूरी तरह से जल गईं। भक्त प्रह्लाद के बचने से संपूर्ण ब्रह्मांड में खुशी मनाई गई। हर तरफ गुलाल और फूलों की बारिश हुई। अधर्म पर धर्म की विजय के रूप में इस पर्व को मनाने की परंपरा धुलंडी की शुरुआत यहीं से मानी जाती है।

इसके पश्चात अगले दिन रामा-शामा का प्रचलन है। जिसके चलते मस्ती के त्यौहार होली में हंसी-मजाक में हुई भुलों की क्षमा मांगने के लिए अपने से बड़े-बुजुर्गों के पांव छूकर उनका आशीर्वाद लिया जाता है। इस प्रकार गले-शिकवे भुलाकर आपसी प्रेम-सौहाद्र्र और भाईचारे की परम्परा का निर्वहन किया जाता है।

देशभर में रंगोत्सव के दूसरे दिन भाई दूज का पर्व मनाया जाता है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, हर वर्ष चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को भाई दूज या भ्रातृ द्वितीया का पर्व मनाया जाता है। होली भाई दूज का पर्व बहन और भाई के प्रेम का प्रतीक है।  भाई दूज के दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र की कामना करती हैं और भाई-बहन के रिश्ते को और मजबूत करती हैं। भाईदोज के साथ ही इस दिन चित्रगुप्त की भी पूजा की जाती है।

जिस प्रकार दिवाली के बाद भाई दूज मनाकर भाई की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना की जाती है और उसे नर्क की यातनाओं से मुक्ति दिलाने के लिए उसका तिलक किया जाता है। उसी प्रकार होली के बाद भाई का तिलक करके होली की भाई दूज मनाई जाती है। जिससे उसे सभी प्रकार के संकटों से बचाया जा सके।

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