प्रदोष व्रत से मिलती शिव जी की कृपा || Vaibhav Vyas


 प्रदोष व्रत से मिलती शिव जी की कृपा

हिन्दू पंचांग के मुताबिक माघ मास का अंतिम प्रदोष व्रत 14 फरवरी, सोमवार के दिन रखा जाएगा। हालांकि त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 13 फरवरी की शाम 6 बजकर 42 मिनट से शुरू हो जाएगी, जबकि त्रयोदशी तिथि का समाप्ति 14 फरवरी की रात 8 बजकर 28 मिनट पर होगी। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में करना शुभ माना जाता है। ऐसे में पूजा के लिए शुभ मुहूर्त 14 फरवरी की शाम 6 बजकर 10 मिनट से रात्रि 8 बजकर 28 मिनट तक है। प्रदोष काल में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। 

शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत के दौरान कुछ खास नियमों का पालन करनी जरूरी होता है। वैसे तो प्रदोष व्रत त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है, लेकिन द्वाद्शी तिथि से ही इसके नियम शुरू हो जाते हैं। प्रदोष व्रत के दौरान तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए। इस दिन शुभ मुहूर्त से पहले उठकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान करना चाहिए। इसके बाद सफेद वस्त्र पहनकर भगवान शिव को जल अर्पित करें, फिर फल, फूल, धूप, दीप, अक्षत, दूध, दही, भांग, धतूरा और पंचामृत आदि भगवान को अर्पित करें। इस दिन शिव चालीसा का पाठ और शिव मंत्र का जाप जरूर करें। शाम की पूजा के बाद फलाहार करें और अगले दिन व्रत का पारण करें। व्रती को इस दिन कथा का श्रवण-वाचन अवश्य करना चाहिए, जिससे व्रत का पूरा फल मिलने वाला रहता है।

पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था। उसका अब कोई सहारा नहीं था इसलिए वह सुबह होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी। वह खुद का और अपने पुत्र का पेट पालती थी। एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला। ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आई। वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था। शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था इसलिए वह मारा-मारा फिर रहा था। राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा।

एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा तो वह उस पर मोहित हो गई। अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई। उन्हें भी राजकुमार पसंद आ गया। कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए। वैसा ही किया गया।

ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करने के साथ ही भगवान शंकर की पूजा-पाठ किया करती थी। प्रदोष व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के साथ फिर से सुखपूर्वक रहने लगा। राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया। मान्यता है कि जैसे ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के प्रभाव से दिन बदले, वैसे ही भगवान शंकर अपने भक्तों के दिन फेरते हैं।

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