पंचक में क्या करना चाहिए क्या नहीं || Vaibhav Vyas


 पंचक में क्या करना चाहिए क्या नहीं

वैदिक ज्योतिष में पांच नक्षत्रों के विशेष मेल से बनने वाले योग को पंचक कहा जाता है। जब चंद्रमा कुंभ और मीन राशि पर रहता है तो उस समय को पंचक कहा जाता है। चंद्रमा एक राशि में लगभग ढाई दिन रहता है इस तरह इन दो राशियों में चंद्रमा पांच दिनों तक भ्रमण करता है। इन पांच दिनों के दौरान चंद्रमा पांच नक्षत्रों धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और रेवती से होकर गुजरता है। अत: ये पांच दिन पंचक कहे जाते हैं।

हिंदू संस्कृति में प्रत्येक कार्य मुहूर्त देखकर करने का विधान है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण है पंचक। जब भी कोई कार्य प्रारंभ किया जाता है तो उसमें शुभ मुहूर्त के साथ पंचक का भी विचार किया जाता है। नक्षत्र चक्र में कुल 27 नक्षत्र होते हैं। इनमें अंतिम के पांच नक्षत्र दूषित माने गए हैं। ये नक्षत्र धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और रेवती होते हैं। प्रत्येक नक्षत्र चार चरणों में विभाजित रहता है। पंचक धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण से प्रारंभ होकर रेवती नक्षत्र के अंतिम चरण तक रहता है। हर दिन एक नक्षत्र होता है।

पंचक यानी पांच। माना जाता है कि पंचक के दौरान यदि कोई अशुभ कार्य हो तो उनकी पांच बार आवृत्ति होती है। इसलिए उसका निवारण करना आवश्यक होता है। पंचक का विचार खासतौर पर किसी की मृत्यु के समय किया जाता है। माना जाता है कि यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु पंचक के दौरान हो तो घर-परिवार में पांच लोगों पर मृत्यु के समान संकट रहता है। इसलिए जिस व्यक्ति की मृत्यु पंचक में होती है उसके दाह संस्कार के समय आटे-चावल के पांच पुतले बनाकर साथ में उनका भी दाह कर दिया जाता है। इससे परिवार पर से पंचक दोष समाप्त हो जाता है।

शास्त्रों में पंचक के दौरान कुछ कार्यों को करने की मनाही रहती है। उन्हें भूलकर भी इस दौरान नहीं करना चाहिए। शास्त्रों में वर्णित है कि पंचक सर्वाधिक दूषित दिन होते हैं इसलिए पंचक के दौरान दक्षिण दिशा की ओर यात्रा नहीं करना चाहिए। घर का निर्माण हो रहा है तो पंचक में छत नहीं डालना चाहिए। घास, लकड़ी, कंडे या अन्य प्रकार के ईंधन का भंडारण पंचक के समय नहीं किया जाता है। शैय्या निर्माण यानी पलंग बनवाना, पलंग खरीदना, बिस्तर खरीदना, बिस्तर का दान करना पंचक के दौरान वर्जित रहता है। इनके अतिरिक्त किसी भी प्रकार के कार्य वर्जित नहीं है। प्रत्येक 27 दिन बाद नक्षत्र की पुनरावृत्ति होती है, इस लिहाज से पंचक हर 27 दिन बाद आता है।

इसके इतर कई ज्योतिषीय जानकारों का यह भी मानना है कि पंचक में आने वाले धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद व रेवती नक्षत्रों में यात्रा, व्यापार, मुंडन आदि शुभ कार्य किए जा सकते हैं। इस दौरान सगाई, विवाह आदि शुभ कार्य भी किए जा सकते हैं। पंचक में आने वाले घनिष्ठा और शतभिषा नक्षत्र में यात्रा करना, वाहन खरीदना, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में बीज बोना, गृह प्रवेश, शांति पूजन और जमीन से जुड़े कार्य करना, रेवती नक्षत्र में कपड़े, व्यापार से संबंधित सौदे करना, गहने खरीदना आदि काम शुभ माने गए हैं। सबसे महत्वपूर्ण यही रहता है कि आपकी कुंडली राशि के अनुसार जानकार ज्योतिष से सलाह के पश्चात ही किसी कार्य को करना या नहीं करने का विचार करना उत्तम रहता है। पंचक में भगवान श्रीगणेश सहित अन्य किसी देवता की प्रतिमा का विसर्जन अशुभ नहीं होता, क्योंकि कई जानकारों के अनुसार, शास्त्रों में पंचक के दौरान शुभ कार्य के लिए कहीं भी निषेध का वर्णन नहीं है।

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