जया एकादशी व्रत से होती मनोकामनाएं पूर्ण || Vaibhav Vyas


 जया एकादशी व्रत से होती मनोकामनाएं पूर्ण

हिन्दू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व है। यह दिन हिन्दू महीने में होने वाले दो चन्द्र चरणों के ग्यारहवां दिन को कहा जाता है। चन्द्र चरण दो होते है शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। यह दिन हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार एक वर्ष में 24 बार आता है। भागवत पुराण के अनुसार प्रत्येक एकादशी के दिन विधिवत पूजा-अर्चना और व्रत करने से विशिष्ट लाभों और आशीर्वादों को प्राप्त किया जा सकता है। हिन्दू धर्म में एकादशी को आध्यात्मिक दिन माना जाता है। इस दिन महिलायें और पुरुष एकादशी का उपवास करते है। निर्जला एकादशी के दिन ना ही कुछ खाया जाता है और ना ही पानी पीया जाता है।

जया एकादशी माघ महीने में शुक्ल पक्ष में आती है और ऐसा माना जाता है कि इस तिथि में व्रत करने से व्यक्ति की जीवन में आ रही समस्याओं का समाधान होकर सुख-समृद्धि का वास होता है। मान्यता अनुसार जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूरी श्रद्धा पूर्वक आराधना करनी चाहिए। इस दिन विष्णु पूजन करने से कई कष्टों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष का द्वार प्रशस्त होता है। माघ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि यानी कि जया एकादशी तिथि 12 फरवरी 2022, शनिवार के दिन मनाई जाएगी जो कि उदया तिथि के अनुसार होगी।

मान्यता अनुसार जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु का माता लक्ष्मी समेत पूजन करने से व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है और उनकी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति इस तिथि के दिन व्रत उपवास करता है उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। जया एकादशी का व्रत सभी व्यक्तियों के लिए बहुत ही पुण्यदायी होता है। पुराणों के अनुसार जया एकादशी व्रत करने से व्यक्ति को मोक्ष, पाप और सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। जया एकादशी का व्रत करने से कई समस्याओं का समाधान आसानी से हो जाता है। जया एकादशी व्रत करने वालों को जया एकादशी की कथा का वाचन-श्रवण करने से पूर्ण लाभ की प्राप्ति होती है।

जया एकादशी की कथा के अनुसार एक समय में देवराज इंद्र नंदन वन में अप्सराओं के साथ गंधर्व गान कर रहे थे, जिसमें प्रसिद्ध गंधर्व पुष्पदंत, उनकी कन्या पुष्पवती तथा चित्रसेन और उनकी पत्नी मालिनी भी उपस्थित थीं। इस विहार में मालिनी का पुत्र पुष्पवान और उसका पुत्र माल्यवान भी उपस्थित हो गंधर्व गान में साथ दे रहे थे। उस समय गंधर्व कन्या पुष्पवती, माल्यवान को देख कर उस पर मोहित हो गई और अपने रूप से माल्यवान को वश में कर लिया। इस कारण दोनों सुर और ताल के बिना गान करने लगे। इसे इंद्र ने अपना अपमान समझा और दोनों को श्राप देते हुए कहा- तुम दोनों ने न सिर्फ यहां की मर्यादा को भंग किया है, बल्कि इंद्र की आज्ञा का भी उल्लंघन किया है। इस कारण तुम दोनों स्त्री-पुरुष के रूप में मृत्युलोक जाकर वहीं अपने कर्म का फल भोगते रहो। इंद्र के श्राप से दोनों पृथ्वीलोक में हिमालय में अपना जीवन दुखपूर्वक बिताने लगे। दुखी होकर दोनों ने निर्णय लिया कि वो देव आराधना करें और संयम से जीवन गुजारें। उसी तरह एक दिन माघ मास में शुक्लपक्ष एकादशी तिथि आ गयी। दोनों ने निराहार रहकर दिन गुजारा और पूरे दिन भगवान विष्णु को स्मरण करते रहे। दूसरे दिन प्रात: उन दोनों को व्रत के पुण्य प्रभाव से मृत्यलोक से मुक्ति मिल गई और दोनों को पुन: अप्सरा का नवरूप प्राप्त हुआ और वे स्वर्गलोक चले गए। तभी से जया एकादशी का महत्व बढ़ गया।

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