कुंडली के बारह भावों में गुरु ग्रह का प्रभाव || Vaibhav Vyas


 कुंडली के बारह भावों में गुरु ग्रह का प्रभाव

शुभ कार्य, यज्ञ इत्दि कर्म, धर्म, ब्राह्मण, देवता, पुत्र, मित्र, सोना, पालकी का कारक गुरु है। गुरु ग्रह न्याय प्रियता, अच्छे गुण व बातें और सुख का द्योतक भी है। जन्म पत्रिका में गुरु के शुभ फल से जातक गुणवान, विद्यावान, संयमी, पुत्रवान, संतोषी एवं धार्मिक होता है। गुरु के अशुभ फल से जातक विद्याहीन, मूर्ख, निसंतान, बिना सोचे समझे कार्य करने वाला एवं असंतुष्ट असंतुष्ट अनुभव करता है। गुरु जिस भाव में हो उस स्थान की हानी करता है, परंतु जिस भाव पर उसकी दृष्टि हो उसे शुभत्व देता है और उस भाव की वृद्धि करता है। अकेला गुरु द्वितीय, पंचम, सप्तम एवं एकादश भावों में हानिकारण होता है एवं उन भावों के शुभ फलों को नष्ट करता है।

प्रथम भाव में- लग्न में स्थित गुरू के प्रभाव से जातक ज्ञानी, अधिकार युक्त, राजमान्य, विशाल हृदय वाला और दयालु होता है। जातक धार्मिक, सत्यवादी, विद्वान, आशावादी, सदैव प्रसन्न रहने वाला, विश्वसनीय और आत्मविश्वास से भरा होता है। जातक सर्वगुण सम्पन्न होता है। जातक के स्वभाव में अनेक विशेषताएं पायी जाती है वह गंभीर होता है, सोच समझकर नपी तुली बातें करता है। जन्म पत्रिका में लग्न में स्थित गुरू अत्यंत योगकारक होता है एवं लग्नस्थ गुरु के प्रभाव से जातक न्यायाधीश, विद्या अध्ययन संबंधी कार्य करने वाला, शासकीय अधिकारी या उच्च शिक्षा प्राप्त अधिकारी होता है। प्राय: व्यवसाय या कर्मक्षेत्र में जातक को असाधारण सफलता प्राप्त होती है।

द्वितीय भाव में- द्वितीय भाव में स्थित गुरू जातक को धनी, सहृदय, प्रसिद्ध और यशस्वी बनाता है। जातक विद्वान और बुद्धिमान होता है। जातक को कई अधिकार प्राप्त होते हैं। वह राजमान्य होता है। जातक विद्वत्ता पूर्ण बातें करने के कारण प्रसिद्ध होता है। जातक ईश्वर की आराधना करता है। द्वितीय भाव स्थित गुरू की पूर्ण दृष्टि अष्टम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक दीर्घायु होता है। जातक स्वस्थ होता है एवं अपने कर्म स्थल में असाधारण सफलता प्राप्त करता है। द्वितीय स्थान पर गुरू की पंचम पूर्ण दृष्टि षष्ठ भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जात ऋणहीन होता है। गुरू की नवम पूर्ण दृष्टि दशम भाव पर होने से जातक कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है। दूसरे भाव में गुरू की उपस्थिति से जातक को ससुराल पक्ष से विशेष लाभ रहता है। पत्नी का भी कार्यक्षेत्र एवं आय का स्रोत अवश्य रहता है।

तृतीय भाव मे- तृतीय भाव में स्थित गुरू के प्रभाव से जातक शास्त्रज्ञ, लेखक, योगी, आस्तिक, कंजूस, कृतघ्न, विनम्र और जितेन्द्रिय होता है। जातक की रूचि ज्ञान अर्जित करने में होती है। जातक पठन-पाठन का शौक रखता है। जातक स्त्रीप्रिय होता है। तृतीयस्थ गुरू की पूर्ण सप्तम दृष्टि नवम भाव पर होती है, जिसके प्रभाव से जातक अपने विषय में प्रभावशाली ज्ञान रखने वाला, संतोषी, धार्मिक, संतान और धन से सुखी भाग्यशाली और दानी होता है। जातक ईश्वर, धर्म एवं धार्मिक कार्यो में विशेष आस्था रखता है। तृतीयस्थ गुरू की पूर्ण पंचम दृष्टि सप्तम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक की पत्नी सुशील एवं आज्ञाकारी होती है। तृतीयस्थ गुरू की नवम पूर्ण दृष्टि आय स्थान अर्थात एकादश भाव पर पड़ती है जिससे जातक की स्थिर आय होती है। तृतीयस्थ गुरू मुख्यत: जातक के पराक्रम एवं भाईयों से संबंध रखता है। शुभ युति और दृष्टि में उच्च शिक्षा तथा भाईयों से संबंध होते हैं। प्राय: ऐसे जातक को संयुक्त परिवार में रहना पसंद होता है। जातक का बौद्धिक क्षेत्रों में विशेष प्रभाव होता है।

चतुर्थ भाव में- चतुर्थ भाव में स्थित गुरू के प्रभाव जातक कुशल वक्ता, विनम्र पढऩे में विशेष रूचि रखने वाला, माता-पिता का भक्त, यशस्वी और व्यवहारकुशल होता है। चतुर्थ स्थान से गुरू का सप्तम पूर्ण दृष्टि पत्रिका के दसवें स्थान पर पड़ती है, जिसके प्रभाव से जातक को पिता का सुख प्राप्त होता है। जातक राजमान्य, प्रतिष्ठित और धनी होता है। गुरू की नवम पूर्ण दृष्टि द्वादश स्थान पर होने के प्रभाव से जातक के खर्च नियंत्रित होते है परंतु धार्मिक कार्यो में वह अतिव्यय करता है। गुरू की पंचम पूर्ण दृष्टि अष्टम स्थान पर होती है जिससे जातक दीर्घायु होता है।

पंचम भाव में- पंचम भाव में स्थित गुरू के प्रभाव से जातक स्वभाव से आस्तिक, यशस्वी, साहसी, नीतिकुशल और कुल में श्रेष्ठ होता है। पंचमस्थ गुरू की सप्तम दृष्टि एकादश भाव पर होती है जिससे जातक की आय स्थिर होती हैं। गुरू की पंचम पूर्ण दृष्टि भाग्य स्थान पर होने से जातक भाग्यशाली एवं धर्मात्मा होता है। गुरू की नवम पूर्ण दृष्टि लग्न पर होने से जातक समझदार, विद्वान स्वाभिमानी एवं स्पष्ट वक्ता भी होता है। पंचम भाव में गुरू होने से जातक उच्चकोटि का सलाहकार और राजमान्य होता है। जातक को पुत्र की प्राप्ति विलंब से होती है। पंचमस्थ गुरू अकेला होने पर पेट में विकार उत्पन्न करता है तथा वायु रोग और कब्ज होने की संभावना होती है। जातक अपने कुल में श्रेष्ठ होता है एवं पूरे कुल का ध्यान रखता है। जातक ज्योतिष व नीति में विशेष रूचि रखता है। वह बुद्धिमान, कला प्रेमी और स्नेही स्वभाव का होता है।

छठे भाव में- छठे भाव में स्थित गुरू के प्रभाव से जातक मधुर भाषी, विवेकी, प्रसिद्ध, विद्वान, उदार, जग में प्रतिष्ठा प्राप्त करने वाला और धैर्यवान होता है। जातक की रूचि सत्कार्यों में होती है। जातक शांत किंतु मानसिक तनाव से युक्त होता है। जातक स्वभाव से थोड़ा आलसी होता है। छठे स्थान में स्थित गुरू की सप्तम पूर्ण दृष्टि बारहवें भाव पर होती है जिसके प्रभाव से जातक के नेत्र में कष्ट होने की संभावना ही है। द्वादश भाव पर गुरू की दृष्टि से जातक के निंयत्रित खर्चे होते है किंतु जातक धर्म संबंधी कार्यों में व्यय अधिक करता है। छठे स्थान में स्थित गुरू की पंचम पूर्ण दृष्टि दशम स्थान पर होने से जातक अपने कार्यक्षेत्र में प्रसिद्धि, ऐश्वर्य एवं सफलता अर्जित करता है।

सातवें भाव में- सातवें भाव में स्थित गुरू के प्रभाव से जातक दयालु, बुद्धिमान, धार्मिक और चंचल स्वभाव का होता है। जातक नम्र कांतिवान, वाचाल, स्पष्टवक्ता, भावुक और सुखी होता है। जातक भाग्यशाली होता है। सप्तम भाव में स्थित गुरू की सप्तम पूर्ण दृष्टि लग्न पर होती है, जिसके प्रभाव से जातक धर्मात्मा, यशस्वी, दनी, कुलिन, सुंदर और सुशील एवं शांत स्वभाव का होता है। सप्तम भाव में स्थित गुरू की नवम पूर्ण दृष्टि तृतीय स्थान पर होने से जातक को भाईयों का सहयोग प्राप्त होता हैं एवं जातक स्वयं के पराक्रम से सफलता अर्जित करता है। गुरू की पंचम पूर्ण दृष्टि एकादश भाव में होती है जिससे जातक की स्थिर आय होती है।

अष्टम भाव में- जन्म पत्रिका में अष्टम भाव में स्थित गुरू के प्रभाव से जातक लोभी, ईष्यालु एवं उदासीन होता है। जातक अपनी मनमर्जी से कार्य करता है एवं यही स्वतंत्रा उसके कष्टों का कारण होती है। जातक अस्थिर बुद्धि वाला होता है। उसे उचित अनुचित का भेद नहीं होता। अष्टम गुरू की द्वितीय भाव पर पूर्ण सप्तम दृष्टि के प्रभाव से जातक अपने पिता द्वारा अर्जित धन का नाश करता है। जातक संवय अर्जित धन से सुख प्राप्त करता है। अष्टम गुरू की पंचम दृष्टि द्वारा भाव पर होने से प्राय: जातक धर्मिक व परमार्थिक कर्मो में अधिक व्यय का सुख प्राप्त होता है। अष्टम भाव में स्थित गुरू के प्रभाव से जातक गूढ़ विद्याओं का ज्ञाता होता है। जातक की आयु लंबी होती है। प्राय: जातक शतायु होते हैं।

नवम भाव में- नवम भाव में स्थित गुरू के प्रभाव से जातक भाग्यशाली, कुलीन, स्वतंत्र विचारों वाला, धर्मात्मा, दानी, यशस्वी ओर परोपकारी होता है। वह तीर्थ यात्राएं करने वाला, भक्त दार्शनिक, प्रतिभाशाली और विद्वान होता है। जातक पराक्रमी और राजमान्य होता है। जातक की ज्योतिष में विशेष रूचि होती है। नवमस्थ बृहस्पति की सप्तम पूर्ण दृष्टि तीसरे भाव पर होती है जिसके प्रभाव से जातक पराक्रमी और दूर देशों की यात्रा करता है। भाई को सुख देने वाला होता है। नवमस्थ गुरू की नवम पूर्ण दृष्टि पंचम भाव पर होने से जातक पुत्रवान व शिक्षावान होता है। जातक की संतान उत्तम होती है। जातक की जन्म पत्रिका में नवम स्थान का गुण सर्वोत्तम माना जाता है। जातक को जीवन के किसी भी अवसर में कठिनाई होने पर इश्वरीय मदद प्राप्त होती है। जातक उच्चकोटि की सफलता उच्च पद और यश अर्जित करता है।

दशम भाव में- दशम भाव में गुरू के प्रभाव से जातक यशस्वी, भक्तिभाव से पूर्ण, वेदान्ती, भाग्यशाली, साहसी, सत्यचरित्र, सत्यवादी, शत्रुओं से रहित, स्वतंत्र विचारों वाला और धनी होता है। जातक किसी धार्मिक संस्था का प्रधान, महत्वाकांक्षी और प्रसिद्ध पुण्यात्मा होता है। जातक का रहन-सहन उच्च स्तरका होता है। दशम भावगत गुरू की सप्तम पूर्ण दृष्टि चतुर्थस्थान पर होती है, जिसके प्रभाव से जातक को भूमि, भवन और वाहन का सुख प्राप्त होता है। जातक को माता पिता से विशेष प्रेम, सुख, सहयोग एवं धन मिलता है। जातक माता -पिता का आदर्श पुत्र होता है। दशम भाव स्थित गुरू की पंचम पूर्ण दृष्टि द्वितीय भाव में होने से जातक को पैतृक संपत्ति की प्राप्ति होती है। जातक को ससुराल पक्ष से भी विशेष लाभ होता है। दशम भाव स्थित गुरू की नवम पूर्ण दृष्टि छठे भाव पर होने से जातक कर्जमुक्त व शत्रुनाशक होता है।

एकादश भाव में - एकादश भाव में स्थित गुरू के प्रभाव से जातक वैभवशाली, प्रभावशाली, उच्च स्तरीय मित्रों से युक्त, दानी और विख्यात होता है। जातक यशस्वी, विद्वान, सत्यवादी, स्त्री से प्रभावित, सदव्ययी और पराक्रमी होता है। ग्यारवें स्थान में स्थित गुरू की सप्तम पूर्ण दृष्टि पंचम स्थान पर होती है जिसके प्रभाव से जातक धनी, भाग्यशाली, पढ़ा-लिखा, विद्वान और उत्तम पुत्रों को प्राप्त करता है। एकादश स्थान में स्थित गुरू की पंचम पूर्ण दृष्टि तृतीय भाव पर होती है जिससे जातक पराक्रमी एवं भाईयों से सहयोग व सुख प्राप्त करता है। एकादश भाव में स्थित गुरू की नवम पूर्ण  दृष्टि सप्तम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को स्त्री का सुख प्राप्त होता है।

द्वादश भाव में - द्वादश भाव में गुरू के प्रभाव से जातक बिना सोचे विचारे अत्यधिक व्यय करता है। जातक का व्यय प्राय: शुभ कार्यो और परोपकार में होता है। जातक स्वभाव से अकर्मण्य, योगाभ्यासी, शास्त्रज्ञ, लोभी, मितभाषी, प्रवासी और सुखी चित्त वाला होता है। द्वादश भाव में स्थित गुरू की सप्तम पूर्ण दृष्टि षष्ठ भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक ऋणमुक्त व शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाला होता है। द्वादशस्थ गुरू की पंचम पूर्ण दृष्टि चतुर्थ भाव पर पड़ती है जिससे जातक को माता व भूमि, भवन, वाहन इत्यादि का सुख प्राप्त  होता है। द्वादशस्थ गुरू की नवम पूर्ण दृष्टि अष्टम भाव पर पड़ती है जिससे जातक दीर्घायु होता है।

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