गुरु ग्रह का विज्ञान || Vaibhav Vyas


 गुरु ग्रह का विज्ञान

हिन्दू पंचांग अनुसार किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिए तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण को देखना जरूरी व महत्वपूर्ण होता है। इसी से शुभ लग्न और मुहूर्त पता चलता है। वार, तिथि, माह, लग्न और मुहूर्त का एक संपूर्ण विज्ञान है। जो लोग इस हिन्दू विज्ञान अनुसार अपनी जीवनशैली ढाल लेते हैं वे सभी संकटों से बचे रहते हैं।

1. गुरु ग्रह का विज्ञान- बृहस्पति ग्रह का वार गुरुवार है। सौरमंडल में सूर्य के आकार के बाद बृहस्पति का ही नम्बर आता है। इस ग्रह का व्यास लगभग डेढ़ लाख किलोमीटर और सूर्य से इसकी दूरी लगभग 778000000 किलोमीटर मानी गई है। यह 13 कि.मी. प्रति सेकंड की रफ्तार से सूर्य के गिर्द 11 वर्ष में एक चक्कर लगा लेता है। यह अपनी धूरी पर 10 घंटे में ही घूम जाता है। लगभग 1300 धरतियों को इस पर रखा जा सकता है। जिस तरह सूर्य उदय और अस्त होता है, उसी तरह बृहस्पति जब भी अस्त होता है तो 30 दिन बाद पुन: उदित होता है। उदित होने के बाद 128 दिनों तक सीधे अपने पथ पर चलता है। सही रास्ते पर अर्थात मार्गी होने के बाद यह पुन: 128 दिनों तक परिक्रमा करता रहता है एवं इसके पश्चात्य पुन: अस्त हो जाता है। गुरुत्व शक्ति पृथ्वी से 318 गुना ज्यादा है।

2. नवग्रहों में गुरु ही है सर्वश्रेष्ठ- गुरुवार की प्रकृति क्षिप्र है। यह दिन ब्रह्मा और बृहस्पति का दिन माना गया है। धनु और मीन राशि के स्वामी गुरु के सूर्य, मंगल, चंद्र मित्र ग्रह हैं, शुक्र और बुध शत्रु ग्रह और शनि और राहु सम ग्रह हैं। नवग्रहों में बृहस्पति को गुरु की उपाधि प्राप्त है। इनके शत्रु बुध, शुक्र और राहु है। कर्क में उच्च का और मकर में नीच का होता है गुरु। चंद्रमा का साथ मिलने पर बृहस्पति की शक्ति बढ़ जाती है। वहीं मंगल का साथ मिलने पर बृहस्पति की शक्ति दोगुना बढ़ जाती है। सूर्य ग्रह के साथ से बृहस्पति की मान-प्रतिष्ठा बढ़ती है।

3. गुरु से ही प्रारंभ होते मांगलिक कार्य- मानव जीवन पर बृहस्पति का महत्वपूर्ण स्थान है। यह हर तरह की आपदा-विपदाओं से धरती और मानव की रक्षा करने वाला ग्रह है। बृहस्पति का साथ छोडऩा अर्थात आत्मा का शरीर छोड़ जाना है।

गुरु ग्रह जिस घर में बैठता है उसको बिगाड़ता है, परंतु जिस भाव को देखता है उसे लाभ पहुँचाता है। गुरु शरीर की शक्ति और ज्ञानकारक तथा सुख, समृद्धि, संतान देने वाला और धर्म-अध्यात्म में रुचि बढ़ाता है। शुभ भाव में निर्दोष गुरु राजयोग बनाता है। कहा गया है किं कुर्वति ग्रहा सर्वे भस्म केंद्रे बृहस्पति- केंद्रस्थ गुरु सौ दोष दूर करता है, परंतु शत्रुग्रहयुक्त, अस्त तथा शत्रु क्षेत्र में न हो। महिला की कुंडली में गुरु सौभाग्यवद्र्धक तथा संतानकारक ग्रह माना गया है।

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