मकर संक्रांति मिश्रित फल देने वाली || Vaibhav Vyas


 मकर संक्रांति मिश्रित फल देने वाली

इस वर्ष मकर संक्रांति 14 जनवरी को पौष शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को शुक्ल, साध्य और ब्रह्म योग के शुभ संयोग में मनाई जाएगी। वहीं मतमतांतर होने के कारण 15 जनवरी को भी मकर संक्रांति का पर्व भी मानाया जाएगा। इस दिन रोहिणी नक्षत्र रहेगा। सूर्य के अस्त होने पहले जिस दिन सूर्य राशि बदलते है। उसी दिन उसका पर्व मनाया जाता है। उदय तिथि के महत्व के अनुसार 15 जनवरी को लोग संक्रांति का स्नान-दान करेंगे। मकर संक्रांति वारयुक्त, नक्षत्र युक्त और वाहन युक्त सहित अन्य कई विशेषताएं लिए होती है जिससे उसके प्रभाव और फल का पता लगता है। इस बार वार अनुसार संक्रांति मिश्रिता और नक्षत्र के अनुसार स्थिर हैं इसका फल शुक्रवार होने के कारण यह संक्रांति मिश्रिता है। रोहिणी नक्षत्र होने के कारण यह संक्रांति ध्रुव प्रकृति अर्थात स्थिर है। इस वर्ष संक्रांति का वाहन बाघ, उपवाहन अश्व और हाथों में गदा रूपी शस्त्र है। गमन पूर्व दिशा में होगा, वस्त्र पीला धारण किए हुए, गंधद्रव्य कुमकुम और पात्र चांदी का है।

ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार मकर संक्रांति उन लोगों के लिए लाभकारी है जो लेखन में रुचि रखते हैं और जो पढ़ाई-लिखाई से वास्ता रखते हैं। किसानों और पशु पालकों को लिए यह लाभकारी है। व्यापार में नुकसान, मौसम में उतार चढ़ाव, राजनीति में मनमुटाव बढ़ेगा। संक्रमण वाले रोग बढ़ेंगे और तेल, सब्जी सहित अन्य खाद्य वस्तुओं के दाम बढ़ेंगे। यह मकर संक्रांति अनिष्टकारी नहीं है फिर भी समाज में भय और चिंता का माहौल बना रहेगा। हालांकि महंगाई पर नियंत्रण होने के आसार नजर आ रहे हैं। यह संक्रांति मिश्रित अर्थात मिले-जुले फल देने वाली है। हालांकि इसके फल में स्थायित्व भी रहेगा। खिचड़ी, कंबल, चप्पल, तिल आदि का दान करने से पुण्य की प्राप्ति होगी।

पितरेश्वरों का ध्यान करके इस दिन किया हुआ दान अक्षय पुण्य प्रदान करने वाला होता है। इस दिन विशेषकर तिल के लड्डू चीनी गेंहू ,चावल, घी,ऊनी वस्त्र, मेवा काजू बादामादि, सर्दी मे खाने वाली मिठाईयां और सुपाच्य द्रव्य जो भी हो दान करना फलदायी माना गया है। इसके अलावा बर्तन, शृंगार का सामान जिसमें सोने-चांदी के आभूषण भी हो, घरेलू सामान जो रोजमर्रा काम में आते हैं उनका भी दान देते हैं। दान की सामग्री यथासंभव जरूरतमंदों को देने से उसका पुण्य फल मिलने वाला रहता है।

मकर संक्रांति के दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण गति करने लगते हैं। इस दिन से देवताओं का छह माह का दिन आरंभ होता है, जो आषाढ़ मास तक रहता है। सूर्य के उत्तरायण होने के बाद से देवों की ब्रह्म मुहूर्त उपासना का पुण्यकाल प्रारंभ हो जाता है। इस काल को ही परा-अपरा विद्या की प्राप्ति का काल कहा जाता है। इसे साधना का सिद्धिकाल भी कहा गया है। इस काल में देव प्रतिष्ठा, गृह निर्माण, यज्ञ कर्म आदि पुनीत कर्म किए जाते हैं। मकर संक्रांति के एक दिन पूर्व से ही व्रत उपवास में रहकर योग्य पात्रों को दान देना चाहिए।

सूर्य संस्कृति में मकर संक्रांति का पर्व ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश, आद्यशक्ति और सूर्य की आराधना एवं उपासना का पावन व्रत है, जो तन-मन-आत्मा को शक्ति प्रदान करता है। संत-महर्षियों के अनुसार इसके प्रभाव से प्राणी की आत्मा शुद्ध होती है। संकल्प शक्ति बढ़ती है। ज्ञान तंतु विकसित होते हैं। मकर संक्रांति इसी चेतना को विकसित करने वाला पर्व है।

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