संतान सुख के लिए करें पुत्रदा एकादशी व्रत || Vaibhav Vyas


 संतान सुख के लिए करें पुत्रदा एकादशी व्रत

सनातन धर्म में एकादशी तिथि का अत्यंत महत्व होता है। इस व्रत को विधि-विधान से करने पर श्री विष्णु हरि की कृपा मिलने लगती है। यह तिथि हर माह में पड़ती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। लेकिन पौष और श्रावण मास की शुक्ल पक्ष में पडऩे वाली संतान प्राप्ति की कामना रखने वालों के लिए एकादशी की यह तिथि अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। पौष शुक्ल पक्ष की एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। इस दिन व्रत करने से नि:संतान दंपतियों को संतान सुख की प्राप्ति होती है। पौष पुत्रदा एकादशी व्रत को लेकर राजा सुकेतु की कथा मिलती है।

पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने वाले व्रतियों को व्रत से पूर्व दशमी के दिन एक समय सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। व्रत के दोरान संयम और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। इसके बाद सुबह-सवेरे स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लेकर भगवान का स्मरण करें। गंगा जल, तुलसी दल, तिल, फूल पंचामृत से भगवान श्री हरि की पूजा करनी चाहिए। यह व्रत निराहार या फलाहार दोनों ही विधि से रख सकते हैं। व्रती संध्या काल में दीपदान के पश्चात फलाहार कर सकते हैं। व्रत के अगले दिन द्वादशी पर किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारणा करना चाहिए। इस दिन व्रत रखने वालों को एकादशी महात्म्य की कथा का श्रवण-वाचन करना चाहिए, जिससे व्रत का पूरा लाभ मिलने वाला रहता है।

पौराणिक कथा के अनुसार भद्रावती नगर में सुकेतु नाम के राजा थे। उनकी पत्नी थी रानी शैव्या। लेकिन दोनों की कोई संतान नहीं थी। इसके चलते दोनों काफी दु:खी थे। एक दिन राजा ने अपनी राजपाठ मंत्री को सौंप दिया और रानी के साथ वन चले गए। वन जाकर भी राजा-रानी का मन बहुत दु:खी रहता था। दोनों ने एक दिन सोचा कि वह आत्महत्या कर लें। लेकिन अगले ही पल राजा ने यह विचार किया कि यह तो सबसे बड़ा पाप है। दु:खी मन से राजा-रानी वन में विचरण करने लगे। तभी उन्हें मंत्रोच्चार का स्वर सुनाई दिया। तब दोनों ही उसी दिशा में आगे बढऩे लगे। कुछ दूर चलने पर ही राजा-रानी को संत मिले जो कि यज्ञ-पूजन कर रहे थे। राजा और रानी ने सभी को प्रणाम किया और अपनी व्यथा कह सुनाई।

संतों ने राजा का दु:ख सुनने के बाद उन्हें पौष पुत्रदा एकादशी व्रत का महत्व और व्रत-पूजन की विधि बताई। इसके बाद राजा और रानी दोनों ने ही संतों द्वारा कही गई व्रत की विधि के अनुसार पौष मास की शुक्ल पक्ष एकादशी को व्रत-पूजन किया। इसके प्रभाव से उन्हें संतान की सुखद प्राप्ति हुई।

मान्यता है कि राजा सुकेतु और रानी शैव्या ने ही सबसे पहले यह व्रत किया था। यह व्रत निराहार और फलाहार दोनों ही विधियों से किया जा सकता है। कहा जाता है कि पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी और श्रावण मास के शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को जो भी यह व्रत करता है उसे संतान की प्राप्ति होती है।

इस प्रकार विधि-विधान से श्री विष्णु हरि की पूजा-अर्चना करने के पश्चात कथा का श्रवण-वाचन करने से निश्चय ही फल प्राप्ति होने वाली मानी गई है।

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