मन के अधिपति देवता चन्द्रमा || Vaibhav Vyas


 मन के अधिपति देवता चन्द्रमा

वेद में कहा गया है कि 'चन्द्रमा मनसो जाताश्चक्षो सूर्यो अजायतÓ अर्थात् चन्द्रमा का मन से घनिष्ठ सम्बन्ध है, इसीलिए समस्त प्राणियों के लिए मानसिक सुख शान्ति का प्रभाव कारक ग्रह चन्द्रमा माना गया है। चन्द्रमा एक जलीय ग्रह है। पौराणिक मतानुसार इसकी उत्पत्ति समुद्र से मानी गयी है। यह एक अत्यंत ही शीतल ग्रह है। संभवत: इसीलिए आशुतोष भगवान शिव इसे अपने सिर पर धारण किये रहते हैं।

कुंडली में इस चन्द्रमा के कारण अनेक योग बनाते है, जो व्यक्ति के जीवन के विविध पहलू को प्रभावित करते है। चन्द्रमा कर्क राशि का स्वामी है। यदि यह अशुभ ग्रहों से घिरा रहता है, तो मन में अनेक विध्वंसक विचार जन्म लेते है। यदि शुभ ग्रहों से घिरा है तो सदा ही निर्माण कारक विचारों की उत्पत्ति होती है। किन्तु एक इसका लक्षण स्थाई देखा गया है कि यदि यह चन्द्रमा चाहे शुभ ग्रहों से घिरा हो या अशुभ ग्रहों से, किन्तु यदि गुरु से युक्त या दृष्ट नहीं है तो लग्न में इसकी स्थिति सदा ही अशुभ मानी गयी है। मानसिक विकलता तथा जीवन में सदा अस्थिरता ही देता है। यह परिणाम प्रत्यक्ष भी देखने को मिला है। यदि इसके आगे पीछे ग्रह न हो तो यह और अशुभ हो जाता है। इस स्थिति में बनने वाला योग अत्यंत अशुभ केमद्रुम योग के नाम से जाना जाता है। इसके विषय में कहा गया है कि केमद्रुमे भवति पुत्र कलत्र हीनो देशान्तरे ब्रजती दु:खसमाभितप्त:. ज्ञाति प्रमोद निरतो मुखरो कुचैलो नीच: भवति सदा भीतियुतश्चिरायु अर्थात जिसकी कुंडली में केमद्रुम योग होता है वह पुत्र कलत्र से हीन इधर उधर भटकने वाला, दु:ख से अति पीडि़त, बुद्धि एवं खुशी से हीन, मलिन वस्त्र धारण करने वाला, नीच एवं कम उम्र वाला होता है। यदि ऐसी स्थिति में इस चन्द्रमा पर गुरु या शुक्र की दृष्टि है तो थोड़ी सी राहत मिल सकती है, किन्तु यह राहत अत्यंत अल्प होगी, किन्तु चन्द्रमा बहुत शुभ फल भी देने वाला होता है। सारे ग्रह छठे या आठवें भाव में अशुभ फल देते है, किन्तु यह ऐसी अवस्था में भी शुभ ही फल देता है।

कृष्ण पक्षे दिवा जातो शुक्ल पक्षे यदा निशि। षष्टाष्टमें चन्द्र: मातरेव परिपालयेत। अर्थात कृष्ण पक्ष में यदि दिन का जन्म हो या शुक्ल पक्ष में रात का जन्म हो तो ऐसी स्थिति में छठे या आठवें भाव में गया चन्द्रमा भी माता की तरह पालन एवं रक्षा करता है। यही नहीं, शनि एक अशुभ ग्रह माना गया है, किन्तु यदि सुख या चौथे भाव में चन्द्रमा स्वगृही होकर शनि से ही युक्त क्यों न हो, वह व्यक्ति बहुत धन संपदा आदि से युक्त होता है तथा उसके पास भूमि, भवन एवं वाहन की अधिकता होती है। मंगल एक अशुभ ग्रह है, किन्तु मेष लग्न में दूसरे या वृश्चिक लग्न में सातवें भाव में चन्द्रमा के साथ यदि मंगल हो तो वह व्यक्ति सर्व सुख संपन्न होता है। यद्यपि यहाँ पर सातवें भाव में मंगल का होना मंगल दोष उत्पन्न करता है, किन्तु चूंकि वृश्चिक लग्न है, तो चन्द्रमा भाग्येश एवं मंगल लग्नेश होगा। ऐसी स्थिति में यह एक अति विशिष्ट योग होगा जो लगभग कुंडली के मंगल तो दूर, अन्य भी बहुतेरे दोषों की शान्ति कर देगा। वैसे भी नवमेश या पंचमेश का केंद्र में होना एक अति शुभ योग की श्रेणी में आता है। चाहे वह ग्रह शनि जैसा अशुभ ग्रह ही क्यों न हो। जैसे यदि भाग्य भाव में मकर राशि हो, तो दशम भाव में कुम्भ जैसी रिक्त राशि में होने के बावजूद भी यदि दशम भाव में बुध एवं शनि की युति व्यक्ति को अत्यंत यशस्वी एवं धन धान्य पूर्ण बनायेगी। चन्द्रमा जितना ही अद्भुत शुभ फल देता है उतना ही विकराल अशुभ फल भी देता है इसकी अशुभता के निवारण के लिए कुंडली में इसकी स्थिति के अनुसार मोती की निर्धारित एवं निश्चित प्रजाति को सोने की अंगूठी में धारण करनी चाहिए। जैसे केमद्रुम योग के लिए शंक्वाकार बसरे की ही मोती धारण करनी चाहिए। विषघात (शनि-चन्द्र की केंद्र में अशुभ युति) हेतु गोल उदात्तविन्दु मोती आदि। फिर भी किसी जानकार ज्योतिषीय की सलाह से ही धारण करना चाहिए।

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