मार्गशीर्ष पूर्णिमा मोक्षदायिनी || Vaibhav Vyas


 मार्गशीर्ष पूर्णिमा मोक्षदायिनी

वैसे तो शास्त्रों में हर पूर्णिमा और अमावस्या का अपना महत्व है, लेकिन मार्गशीर्ष पूर्णिमा को और भी विशेष माना जाता है। मान्यता है कि मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्यक्ति को मुक्ति दिला सकती है। इसलिए इस पूर्णिमा को शास्त्रों में मोक्षदायिनी कहा गया है। इस दिन दान, ध्यान और स्नान का विशेष महत्व होता है और इसका 32 गुना फल व्यक्ति को प्राप्त होता है।

कहा जाता है कि मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन किए गए शुभ कार्यों का 32 गुना फल मिलता है, इसलिए इसे बत्तीसी पूर्णिमा भी कहा जाता है। ये तिथि माता लक्ष्मी को भी अत्यंत प्रिय है। इस दिन मां लक्ष्मी को खीर का भोग लगाना चाहिए। घर में सत्यनारायण की कथा पढऩी या सुननी चाहिए। माना जाता है कि इससे समस्त पापों से मुक्ति मिलती है, परिवार के संकट दूर होते हैं और परिवार में सुख समृद्धि आती है।

पूर्णिमा के दिन श्री नारायण और माता लक्ष्मी की सच्चे दिल से पूजा करने मात्र से ही मोक्ष के लिए मार्ग खुल जाता है। पूर्णिमा की रात चंद्रमा भी अपनी 16 कलाओं से पूर्ण होता है। इस दिन व्रत रखने से कुंडली में चंद्रमा की स्थिति में सुधार होता है और मानसिक तनाव और मन में बनी उथल-पुथल की स्थिति से मुक्ति मिलती है। इस बार मार्गशीर्ष पूर्णिमा तिथि 18 दिसंबर शनिवार को है।

पंचाग के अनुसार मार्गशीर्ष पूर्णिमा 18 दिसंबर को सुबह 7.24 बजे से अगले दिन 19 दिसंबर को सुबह 10 बजकर 05 मिनट तक रहेगी। 18 दिसंबर को साध्य योग सुबह 9.13 बजे तक है। उसके बाद शुभ योग प्रारंभ हो जाएगा। शुभ योग पूर्णिमा के अंत तक रहेगा।

मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन सुबह उठकर भगवान नारायण का मन-ही-मन में ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें। स्नान के समय जल में थोड़ा गंगाजल और तुलसी के पत्ते डालें फिर जल को मस्तक पर लगाकर भगवान को याद कर प्रणाम करें। इसके बाद स्नान करें। पूजा स्थान पर चौकी बनाकर श्रीहरि की माता लक्ष्मी के साथ वाली तस्वीर स्थापित करें। उनका स्मरण कर, चंदन, फूल, फल, प्रसाद, अक्षत, धूप, दीप आदि अर्पित करें. इसके बाद पूजा स्थान पर वेदी बनाएं और हवन के लिए अग्नि प्रज्जवलित करें। इसके बाद ऊँ नमो भगवते वासु देवाय नम: स्वाहा इदं वासु देवाय इदं नमम बोलकर हवन सामग्री से 11, 21, 51, या 108 आहुति दें। हवन समाप्ति के बाद भगवान का ध्यान करें। उनसे अपनी गलती की क्षमायाचना करें।

पूजन के बाद सामथ्र्य के अनुसार दान करें। यदि कुंडली में चंद्रमा की स्थिति कमजोर है तो इस दिन सफेद चीजों जैसे दूध, खीर, चावल, मोती आदि का दान करें। अगर व्रत रखा है तो पूर्णिमा की रात को नारायण भगवान की मूर्ति के पास ही सोएं। दूसरे दिन स्नान करें और पूजा कर जरूरतमंद व्यक्ति और ब्राह्मण को भोजन कराएं, दान-दक्षिणा दें, इसके बाद व्रत का पारण करें।

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