सूर्य देव की भग नाम से पूजा शुभ फलदायी || Vaibhav Vyas


 सूर्य देव की भग नाम से पूजा शुभ फलदायी

पंचांग के अनुसार वर्ष के दसवें महीने को पौष माह कहा जाता है। विक्रम संवत में पौष दसवां महीना होता है। जिस मास की पूर्णिमा को चांद जिस नक्षत्र में रहता है। उस मास का नाम उस नक्षत्र के आधार पर रखा गया है। पौष मास की पूर्णिमा को चंद्रमा पुष्य नक्षत्र में रहता है। इसलिए इस मास को पौष का मास कहा गया है।

शास्त्रों के अनुसार सूर्य देव के भग नाम से इस महीने पूजन करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। भग को धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य कहा गया है। वहीं मान्यता है कि इस मास में मांगलिक काम नहीं करना चाहिए। उनका लाभ नहीं मिलता। पौष मास में सूर्य धनु राशि में गोचर करते हैं। धनु के स्वामी बृहस्पति माने गए हैं। मान्यता है कि देव गुरु इस समय देवताओं सहित सभी मनुष्यों को ज्ञान देते हैं।

प्रतिदिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। ताम्बे के पात्र में जल लें। उसमें लाल चंदन या कुंकुम, लाल फूल डालकर सूर्य मंत्र- ऊं सूर्याय नम: का जाप कर जल अर्पित करें। साथ ही पूजा स्थान में सूर्य मंत्र का जाप करना चाहिए। आदित्यम् हृदय स्त्रोत का पाठ नियमित करने से सूर्य की कृपा मिलने वाली रहती है। सूर्य की पूजा-उपासना में ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत होकर सूर्य भगवान की पूजा-आराधना विशेष फलदायी मानी गई है।

पौष मास में जहां पूजा-आराधना का महत्व है वहीं स्वास्थ्य की दृष्टि से भी खान-पान पर नियंत्रण के साथ तली हुई चीजें और ज्यादा मसालेदार खाने से बचना चाहिए और खान-पान में विशेषकर खाने में मेवे का इस्तेमाल करना चाहिए। साथ ही गुड़ और अजवाइन, लौंग, अदरक और घी का इस्तेमाल लाभकारी होता है। इस महीने लाल-पीले वस्त्रों का उपयोग करना चाहिए। घर के पूजा स्थान में नियमित सुबह-शाम कपूर की सुगंध का उपयोग करने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह रहता है।

सूर्य को जीवन, स्वास्थ्य एवं शक्ति के देवता के रूप में मान्यता हैं। सूर्यदेव की कृपा से ही पृथ्वी पर जीवन बरकरार है। ऋषि-मुनियों ने उदय होते हुए सूर्य को ज्ञान रूपी ईश्वर बताते हुए सूर्य की साधना-आराधना को अत्यंत कल्याणकारी बताया है। प्रत्यक्ष देवता सूर्य की उपासना शीघ्र ही फल देने वाली मानी गई है।  प्रत्यक्ष देव सूर्यदेव की साधना-आराधना का अक्षय फल मिलता है।

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